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[३५] लिए हुए है। दूसरा पार्श्वनाथ का मन्दिर है। यहां कार्तिक शुक्ला १६ को वार्षिक मेला होता है।
बनारस बनारस का प्राचीन नाम वाराणसी है और वह प्राचीन काशी देश की राजधानी रही है। यह जैन धर्म का प्राचीन केन्द्र है। सातवें तीर्थङ्कर श्री सुपार्श्वनाथ ओर तेईसवे तीर्थङ्कर श्री पार्श्व नाथ जी का लोकोपकारी जन्म यहीं हुआ था। भदैनी में सुपाश्वं नाथ और भेलूपुर में पार्श्वनाथ तीर्थकर के जन्म स्थान हैं। और वहां दर्शनीय मन्दिर बने हुये हैं। भेलूपुर में दिगम्बर और श्वेताम्बरों का सम्मिलित मन्दिर हैं तथा दो दिगम्बर मन्दिर हैं। इनके अतिरिक्त बूलानाले पर एक पंचायती मन्दिर और । अन्यत्र तीन चैत्यालय हैं। जौहरी जी के चैत्यालय में हीरा की एक प्रतिमा दर्शनीय है। मैदागिन में भी विशाल धर्मशाला और मन्दिर है। भदैनी पर श्री स्वाद्वाद महाविद्यालय दि० जैनियों का प्रमुख शिक्षा केन्द्र है। जिसमें उच्चकोटि की संस्कृत और जैन सिद्ध न्तों की शिक्षा दी जाती है। हिन्दू विश्व विद्यालय के समीप 'सन्मति निकेतन' नाम का स्थान है जहां एक जैन मन्दिर और छात्रावास है । वहाँ रहकर विद्यार्थी अध्ययन करते हैं । महाकवि वृद वन जी ने यहीं रहकर अपनी काव्य रचना की थी। यहीं पर उनके पिता जी ने अपने साहस को प्रकट करके धर्म द्रोहियों का मान मर्दन करके जिन चैत्यालय बनवाया, जिससे धर्म की विशेष प्रभावना हुई थी। भावुक यात्रियों को इस घटना से धर्मप्रभावना का सतत उद्योग करने का पाठ हृदयाङ्गम करना चाहिए। बनारस विद्या का केन्द्र है। यहाँ पर हिन्दू विश्वविद्यालय दर्शनीय संस्था है। क्या ही अच्छा हो कि यहां पर एक उच्चकोटि का जैन कालेज स्थापित किया जावे ! यहां के बरतन और