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सबसे पहले यहीं हुई थी। तात्यर्थ यह है कि धर्म-कर्म का पुण्यमयी लीलाक्षेत्र अयोध्या ही है। इस पुनीत तीर्थ के दर्शन करने से मनुष्य में कर्म वीरता का संचार और त्याग वीरता का भाव जागृत होना चाहिए । केवल ऋषदेव ही नही बल्कि द्वितीय तीर्थकर श्री अजीतनाथ, चौये तीर्थकर श्री अभिनन्दननाथ, पाँचत्रे तीर्थकर श्री सुमतिनाथ जी और १४ वें तीर्थंकर श्री अनन्तनाथ जी का जन्म भी यहीं हुआ था। जिन्होंने महान राज ऐश्वर्य को त्याग कर मुनिपद धारण करके जीवों का उपकार किया था। यह सुन्दर तीर्थ अयोध्या सरयू नदी के किनारे बसा हुआ है। मु० कटरा में एक जैन मन्दिर और धर्मशाला है। मुहल्ला रामगंज में बिशाल मूर्ति हैं। यह विशाल मन्दिर सन् १९६५ में बना है। एक विशाल धर्मशाला है। पांच दिगम्बर जैन टोंके हैं, चरणचिन्ह प्राचीन काल के हैं। प्राचीन मन्दिर शाहबुद्दीन के समय में नष्ट किये जा चुके हैं। वर्तमान मन्दिर संवत् १७८१ में नबाब सुजाउद्दौला के राज्यकाल के बने हुए हैं। यह पाँचों टोंके क्रमश: मुहल्ला कटरा से प्रारम्भ करके सरयू नदी, कटरा स्कूल, बेगमपुरा और वक्सरिया टोले में हैं।
रत्नपुरी - रत्नपुरी यह पवित्र स्थान है जहां १५वें तीर्थकर श्री धर्मनाथ जी का जन्म हुआ था। वहाँ फैजाबाद से जाया जाता है। दो दिगम्बर मन्दिर हैं। वहां के दर्शन करके फैजाबाद से बनारस, जाना चाहिये।
त्रिलोकपुर त्रिलोकपुर अतिशयक्षेत्र बाराबंकी जिले में बिन्दौरां स्टेशन से तीन मील दूर है । मार्ग कच्चा है। यहां तीर्थकर भ० नेमिनाथ की २२ इंची श्यामवर्ण पाषाण की बड़ी मनोज्ञ पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। वह सं० ११६७ की प्रतिष्ठित है और चमत्कार