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के हृदय में आत्म-गौरव की भावना जागृत होना स्वाभाविक है। वह अपने गौरव को जैन समाज का गौरव समझेगा और ऐसा उद्योग करेगा जिसमें धर्म और संघ की प्रभावना हो। तीर्थ यात्रा में उसे मुनि, प्रायिका प्रादि साधु पुरुषों के दर्शन और भक्ति करने का भी सौभाग्य प्राप्त होता है । अनेक स्थानों के सामाजिक रीतिरिवाजों और भाषाओं का ज्ञान भी पर्यटक की सुगमता से होता है। घर से बाहर रहने के कारण उसे घर-धन्धे की आकुलता से छुट्टी मिल जाती है । इसलिए यात्रा करते हुये भाव बहुत शुद्ध रहते हैं। विशाल जैन मंदिरों और भव्य प्रतिमाओं के दर्शन करने से बड़ा मानन्द प्राता है। अनेक शिलालेखों के पढ़ने से पूर्व इतिहास का परिज्ञान होता हैं। संक्षेप में यह कि तीर्थ यात्रा में मनुष्य को बहुत से लाभ होते हैं। ___ यात्रा करते समय मौसम का ध्यान रखकर ठण्डे और गरम कपड़े साथ ले जाने चाहिये; परन्तु वह जरूरत से ज्यादा नहीं रखने चाहिए। रास्ते में खाकी ट्विल की कमीजें अच्छी रहती हैं। खाने पीने का शुद्ध सामान घर से लेकर चलना चाहिये। उपरान्त खत्म होने पर किसी अच्छे स्थान पर वहां के प्रतिष्ठित जैनी भाई के द्वारा खरीद लेना चाहिये। रसोई वगैरह के लिए बर्तन परिमित ही रखना चाहिए और जोखम की कोई चीज या कीमती जेवर लेकर नहीं जाना चाहिये । आवश्यक औषधियां और पूजनादि की पोथियाँ अवश्य ले लेनी चाहिये । थोड़ा सामान रहने से यात्रा करने में सुविधा रहती है। यात्रा में और कौन-सी बातों का ध्यान रखना आवश्यक हैं, वह परिशिष्ट में बता दिया गया है। यात्रेच्छु उस उपयोगी शिक्षा से लाभ ठावें ।
तीर्थयात्रा के लिए तीर्थों की रूपरेखा का मानचित्र प्रत्येक भक्तहृदय में अंकित रहना आवश्यक है। वह यात्रा करे या न करे, परन्तु वह यह जाने अवश्य कि कौनसे हमारे पूज्य तीर्थ