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तीर्थ यात्रा से लाभ
... और
तीर्थों की रूपरेखा तीर्थयात्रा क्यों करनी चाहिए? इस प्रश्न का उत्तर देना अब अपेक्षित नहीं; क्योंकि जो महानुभाव तीर्थों के महत्व को जान लेगा, वह स्वयं इसका समाधान कर लेगा। यदि वह रत्नत्रयधर्म की आराधना करके, विशेष पुण्यबन्ध करना चाहता हैं, तो वह अवश्य ही तीर्थयात्रा करने के लिए उत्सुक होगा। घर बैठे ही कोई अपने धर्म के पवित्र स्थानों का महत्व और प्रभाव नहीं जान सकता। सारे भारत वर्ष में जैनतीर्थ बिखरे हुए हैं। उनके दर्शन करके ही एक जैनी धर्म-महिमा की मुहर अपने हृदय पर अंकित कर सकता है, जो उसके भावी जीवन को समुज्वल बना देगी। यह तो हुआ धर्मलाभ, परन्तु इसके साथ ब्याजरूपी देशांटनादि के लाभ अलग ही होते है । देशाटन में बहुत सी नई बातों का अनुभव होता है और नई वस्तुओं के देखने का अवसर मिलता है। यात्री का वस्तुविज्ञान और अनुभव बढ़ता है
और उसमें कार्य करने की चतुरता और क्षमता आती है। घर में पड़े रहने से बहुधा मनुष्य संकुचित विचारों का कूपमंडूक बना रहता है, परन्तु तीर्थयात्रा करने से हृदय से विचार-संकीर्णता दूर हो ज ती है, उसकी उदारवृत्ति होती है । वह पालस्य और प्रमाद का नाश करके साहसी बन जाता है । अपना और पराया भला करने के लिए वह तत्पर रहता है।
जैनी अपने पूर्वजोंके गौरवमयी अस्तित्व का परिचय प्राचीन स्थानों का दर्शन करके ही पा सकते हैं, जो कि तीर्थयात्रा में सुलभ है। साथ ही वर्तमान जैन समाज की उपयोगी संस्थाओं जैसे जैन कालिज, बोडिंग हाउस, महाविद्यालय, धाविकाश्रम आदि के निरीक्षण करने का अवसर मिलता है। इस दिग्दर्शन से दर्शक