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(११) जीर्णोद्धार किसे कहते हैं ? किन-किन जैन तीर्थों के जीर्णोद्वार की विशेष प्रावश्यकता है? जीर्णोद्धार का कार्य नये मन्दिर बनवाने की अपेक्षा अधिक प्रावश्यक श्रौर महान् पुण्यबन्ध का कारण है - इसके पक्ष में कुछ लिखो । (१२) तीर्थक्षेत्रों की उन्नति के कुछ उपाय बताओ ? (१३) तीर्थयात्रा में एक यात्री की दिनचर्या और व्यवहार कैसा होना चाहिए ? उसे यात्रा में क्या-क्या सावधानी रखनी चाहिये ?
(१४) अप्रकट तीर्थ कौन-कौन से हैं और उनका पता लगाना क्यों श्रावश्यक है ?
(१५) तीर्थ क्षेत्रों की वन्दना करते हुए प्रत्येक यात्री को कैसी पवित्रता रखनी चाहिए, जिससे वह अपनी अन्तरात्मा को पवित्र बना सके ।
उपसंहार
" श्री तीर्थपान्थरजसा विरजी भवन्ति, तीर्थेषु विभ्रमणतो न भवे भ्रमन्ति । तीर्थव्ययादिह नराः स्थिरसम्पदः स्युः, पूज्या भवन्ति जगदीशमथार्चयन्तः ॥"
तीर्थ की पवित्रता महान है। आचार्य कहते हैं कि- श्री तीर्थ के मार्ग की रज को पाकर मनुष्य रज रहित अर्थात् कर्ममल रहित हो जाता है। तीर्थ में भ्रमण करने से वह भव-भ्रमण नहीं करता है। तीर्थ के लिए धन खर्च करने से स्थिर सम्पदा प्राप्त होती है। मौर जगदीश जिनेन्द्र की पूजा करने से वह यात्री