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नम्बर पड़े हुए हैं, जिससे वन्दना करने में गलती नहीं होती। यहां की यात्रा करके ग्वालियर जाना चाहिये ।
ग्वालियर
स्टेशन से दो मील दूर चम्पा बाग और चौक बाजार में दो पंचायती मन्दिरों में चित्रकारी का काम अच्छा हैं । यहाँ २० दि० जैन मंदिर और चैत्यालय हैं। ग्वालियर से लश्कर एक मील की दूरी पर है। वहाँ जाते हुये मार्ग में दो फलाँग के फासले पर एक पहाड़ है, जिसमें बड़ी २ गुफायें बनी हुई हैं । उनमें विशाल प्रतिमायें हैं। यहां से ग्वालियर का प्रसिद्ध किला देखने जाना चाहिए । किले में अनेक ऐतिहासिक चीजें देखने काबिल हैं । ग्वालियर के पुरातन राजानों में कई जैन धमांनुयायी थे । कच्छ। वाहा राजा सूरजसेन ने सन् २७५ में ग्वालियर बसाया था । वह गोपगिरि प्रथमा गोपदुर्ग भी कहलाता था । तोमर वंशी राजा डूंगर सिंह और उनके पुत्र राजा कीर्तिसिंह जी के समय में यहां जैनियों का प्राबल्य था । उपरांत परिहार वंश के राजा ग्वालियर के अधिकारी हुये । उनके समय में भी दि० जैन भट्टारकों की गद्दी वहां विद्यमान थी। उस समय के बने हुए अनेक जैन मन्दिर और मूर्तियां मिलती हैं। उनको बाबर ने नष्ट किया था। फिर भी कतिपय मन्दिर और मूर्तियां प्रखण्डित प्रवशिष हैं। सब से प्राचीन पार्श्वनाथ जी का एक छोटा सा मन्दिर है। पहाड़ी चट्टानों को काट कर अनेक जिन मूर्तियां बनाई गई हैं। यहां अधिकांश मूर्तियाँ श्री प्रादिनाथ भगवान की हैं। एक प्रतिमा श्री नेमिनाथ जी की ३० फीट ऊँची है। यहां से इच्छा हो तो भेलसा जाकर भद्दलपुर ( उदयगिरि) के दर्शन करे ।
भेलसा
कई जंनी भेलसा को ही दसवें तीर्थङ्कर श्री शीतलनाथ जी,