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[ ११०] में बहुत सी खण्डित प्रतिमायें विराजमान हैं जिनमें १०० के लगभग मूर्तियां हैं, उनमें से कुछ मूर्तियां ६ फुट ऊँची खड्गासनस्थ हैं। और कुछ चार-चार पांच-पांच फुट ऊंची हैं। उसी मांगन में चबूतरे पर प्राकृत भाषा का एक लेख भी उत्कीर्ण है जिसके प्रक्षर बिल्कुल घिस गए हैं। पढ़ने में नही पाते। उस पर संवत् १००८ माघ सुदी ११ उत्कीणित है। इस मन्दिर के चारों मोर अनेक खण्डित मूर्तियां हैं। जिनसे मालूम होता है कि ये मन्दिर किसी भी समय साम्प्रदायिक वातावरण में अपनी श्री खो चुके हैं। स्थान अच्छा है, और मन्दिरों का समूह अतीतकाल के जैनियों की समृद्धि को सूचित करता है। यहाँ क्या क्या अतिशय हुपा है यह कुछ ज्ञात नहीं हुआ, किन्तु यह एक अतिशय क्षेत्र है। यहां जैनियों की संख्या प्रत्यल्प है। प्रति वर्ष फाल्गुन मास में रथोत्सव भी होता है।
श्री सोनागिरि सिद्ध क्षेत्र ललितपुर से सोनागिरि पावे। यह पर्वत राज स्टेशन से तीन मील दूर है। कई धर्मशालायें हैं। नीचे तलहटी में १८ मंदिर हैं और पर्वत पर ७७ मन्दिर हैं। भट्टारक हरेन्द्रभूषण जी का मठ
और भण्डार भी है। यह पर्वत छोटा सा अत्यन्त रमणीक है। यहां से नंग-प्रनंग कुमार साढ़े पांच करोड़ मुनियों के साथ मुक्ति गए हैं। पर्वत पर सबसे बड़ा प्राचीन और विशाल मन्दिर श्री चन्द्रप्रभु स्वामी का है। इसमें ७।। फीट ऊंची भ० चन्द्रप्रभु को अत्यन्त मनोज्ञ खङ्गासन प्रतिमा विराजमान हैं। इसमें एक हिन्दी का लेख किसी प्राचीन लेख के आधार से लिखा गया है। जिससे प्रगट है कि इस मन्दिर को सं० ३३५ में श्री श्रवणसेन कनकसेन ने बनवाया था। इसका जीणोद्धार सं० १८८३ में
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