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[१०८] ललितपुर से ३७ मील, बसई और तालबेहट जो मध्य रेलवे का स्टेशन है, यहां से पाठ या नौ मील की दूरी पर है। किसी समय इसे भी जैन संस्कृति का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। मूल भोयरे से पवा गांव तीन फर्लागं के लगभग दूर होगा। यहाँ १३ वी १४ वीं शताब्दी की प्रतिष्ठित मनोज्ञ मूर्तियाँ उपलब्ध होती हैं। यदि अन्वषण किया जाय तो वहाँ आस-पास की पहाड़ियों पर या टीलों की खुदाई में जैन संस्कृति को कुछ वस्तुयें प्राप्त हो सकती हैं । परन्तु पं० परमानन्द जी की मान्यता हैं कि यह पवा कोई सिद्ध क्षेत्र नहीं हैं, और न इसका साधक कोई पुरातन प्रमाण ही ही उपलब्ध है। केवल १३ वी १४ वीं शताब्दी की मूर्तियां इसे सिद्ध क्षेत्र सिद्ध करने में सर्मथ नही है। सिद्ध क्षेत्रों में इसका कोई उल्लेख भी नहीं हैं। यहां क्या कुछ अतिशय विशेष कब और किसके कारण प्रकट हुआ, इसका कोई प्रमाणिक उल्लेख नही हैं। निर्वाण काण्ड और निर्वाण भक्तियों और तीर्थ यात्रा प्रबन्धों में इसे कहीं सिद्ध क्षेत्र नहीं लिखा। ऐसी स्थिति में इसे सिद्ध क्षेत्र बतेलाना भूल से खाली नहीं है। किन्तु इसके विपरीत श्री सागरमल जी वैद्य "सागर" इसे पावागिरि अनुमान करते हैं।
अतिशय क्षेत्र पचराई पचराई खनियाधाना स्टेट में है। यह खनियाधाने से एक या डेढ़ मील के फासले पर अवस्थित हैं। यहां २२ मन्दिर हैं। इसे भी अतिशय क्षेत्र बतलाया जाता है । ग्वालियर और झांसी जिले के पास-पास का प्रायः सारा इलाका किसी समय जैन धर्म और जन संस्कृति का केन्द्र रहा है। खनियाधाना और ग्वालियर स्टेट का जैन पुरातत्व, जैन मूर्तियां और मन्दिरों के खण्डहर इस बात के द्योतक हैं कि १२ वी १३ वीं शताब्दी में यह स्थान जन-धन से समृद्ध था। यहां का भ० शांतिनाथ का मन्दिर बहुत प्रसिद्ध है। और वह १२ वी शताब्दी के प्रारम्भ काल में बनाया गया था,