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________________ काश्मीरकी मेरी यात्रा और अनुभव यात्राका कारण और विचार कितने ही दिनोसे मेरी यह इच्छा बनी चली आ रही थी कि भारतके मुकुट और सौन्दर्यको क्रीडाभूमि काश्मीरकी यात्रा एक बार अवश्य की जाय । सौभाग्य कहिए या दुर्भाग्य, अप्रेलके मध्यमे तपोनिधि श्री १०८ आचार्य नमिसागरजी महाराजके मेरठ में दर्शन कर देहलो वापिस आते ही मैं अस्वस्थ पड़ गया और लगभग सवा माह तक 'लो ब्लड प्रेशर' का शिकार रहा। मित्रो, हितैषियो व सस्याधिकारियोंने मुझे स्वास्थ्य-सुधारके लिए काश्मीर जानेकी प्रेरणा की। उनकी सद्भावनापूर्ण प्रेरणा पा मेरी इच्छा और बलवती हो गई। अन्तमें काश्मीर जानेका पूर्ण निश्चय किया और भारत सरकारके काश्मीर विभागसे तीन माहके पाम बनवा कर २२ मई १९५४ को देहलीसे श्रीनगर तक के ४२ रु० के वापिसी इन्टर-टिकट लेकर हमने सपत्नीक ला० मक्खनलालजी जैन ठेकेदार देहलीके साथ काश्मीर मेलसे प्रस्थान किया। दूसरे दिन प्रात पठानकोट पहुंचे और उसी समय रेलवेकी आउट एजेन्सी लेने वाली N D राधाकृष्ण बस कम्पनीकी १३ सीटी बससे, जो हर समम तैयार रहती है, हम लोग श्रीनगरके लिए रवाना हो गये । १२ बजे दिनमे जम्मू पहुँचे और वहाँ खाना-पीना खाकर एक घण्टे बाद चल दिये । यहाँ उक्त बम-सर्विसका स्टेशन है । अनेक घाटियोको पार करते हए रातको ८॥ बजे बनिहाल पहुंचे और वहाँ रात विताई । यहाँ ठहरनेके लिये किरायेपर कमरे मिल जाते है । जम्मू और उसके कुछ आगे तक तीव्र गर्मी रहती है किन्तु वनिहालसे चित्ताकर्षक ठडी हवायुक्त सर्दी शुरू हो जाती है और कुछ गर्म कपडे पहनने पडते हैं । यात्री यहाँसे गर्मीके कष्टको भूलकर ठडका सुखद अनुभव करने लगता है। काश्मीरकी उत्तु ग घाटियो और प्राकृतिक दृश्योको देखकर दर्शकका चित्त वडा प्रसन्न होता है। जब हम नौ हजार फुटकी ऊंचाईपर टेनिल पहुँचे और एक जगह रास्ते में बर्फकी शिलाओपर चले-फिरे बर्फको उठाया तो अपार आनन्द आया। काश्मीर में सबसे ऊंची जगह यही टेनिल है। यहाँसे फिर उतार शुरू हो जाता है । हमारी बस पहाडोके किनाने-किनारे गोल चक्कर जैसे मार्गको तय करती हुई २४ मईको प्रात ७ बजे खन्नाबल पहुँच गयी । यहाँसे श्रीनगर सिर्फ ३० मील रह जाता है। पहले श्रीनगर न जाकर यही उतर कर मटन, पहलगांव, अच्छावल, कुकरनाग आदि स्थानोको देख भाना चाहिये और बादमे श्रीनगर जाना चाहिये । इसमें काश्मीर-पर्यटकको समय, शक्ति और अर्थकी बचत हो जाती है। अत हम लोग यही उतर गये और तांगे करके ११ बजे दिन में मटन पहुँचे। मटन-में प० शिवराम नीलकण्ठ पण्डेके मकानमें ठहरे। प०शिवराम नीलकण्ठ सेवाभावी और सज्जन है। यहाँ तीन-सौ के लगभग पण्डे रहते हैं। यह हिन्दुमोका प्रमुख तीर्थ स्थान है । यहाँ पानीकी खूब बहार है । चारो ओर पानी ही पानी है । तीन कुण्ड है, जिनमें एक वृहद् चश्मसे पानी आता है। पास ही लम्बोदरी नदी अपना लम्बा उदर किये वहती है, जिसपर सवा लाख रुपयेके ठेकेपर एक नया पुल बन रहा है। इसी लम्बोदरी नदोसे महाराजा प्रतापसिंहके राज्य-समयमे गण्डामिह नामके साधारण सिखने अपने बुद्धिचातुर्यसे पहाडी खेतीकी सिंचाईके लिए पहाडोंके ऊपरसे एक नहर निकाली थी, जो आश्चर्यजनक है -३६७
SR No.010322
Book TitleJain Tattvagyan Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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