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और जिसपर महाराजाने उसे अपनी रियासतका चीफ इन्जीनियर बना दिया था। यह नहर २२ मील लम्बी और वेगसे पानी बहाने वाली है। नहरके पास एक डाक बगला है जिसमें पहले दर्शक भी ठहरते थे । हम व ला० मक्खनलालजी यही आकर स्वाध्याय व तत्त्वचर्चा किया करते थे । मटनसे एक मीलकी दूरीपर वह प्रसिद्ध एव विशाल हिन्दुओका मार्तण्ड मंदिर है, जिसे सन् ८५६ में अवन्तिवर्मा (श्रीवर्मा) ने बनवाया था और सन् १३९० में सुलतान सिकन्दरने तोडा था । मन्दिरके विशाल और बडे-बडे पत्थरोंको देख कर आश्चर्य होता है कि उस जमाने में जब क्रेन नहीं थी, इतने वडे पत्थर इतगे कैसे कैसे पढाये गये होगे। कहते है कि इस मार्तण्ड मन्दिरके कारण ही मार्तण्डका मटन नाम हो गया ।
कुकरनाग - मटनसे अनन्तनाग, अच्छावल होते हुए ३ जूनको हम लोग बस द्वारा कुकरनाग गये । कुकरनाग मटनसे १९ मील है । ठहरनेके लिए जगह अच्छी मिल जाती है । यहाँ कई चश्मे हैं, जिनका पानी बहुत अच्छा व स्वास्थ्यप्रद है। चश्मोंसे इतना पानी आता है कि उससे एक नदी बन गई और जिसका नाम 'कुकरनाग' हूँ पहाटपर राज्यसरकारकी ओरसे एक बगला बना हुआ है, जो दर्शको के लिए भी किराये पर दिया जाता है। एक बगला और राज्यसरकारकी ओरसे नीचे बन रहा है। और भी कई लोगोने बगले बनवा रखे हैं, जो किराये पर दिये जाते हैं । यहाँ एक मीलपर एक चूने वाला चश्मा है, जिसके बारेमें प्रसिद्धि है कि इसके पानीमें कैलशियम है और खुजली आदि चर्मरोगोको दूर करता है । यहाँ कितने ही लोग चार-चार महीना इसीलिये रहते हैं कि यहाँका जलवायु उत्तम है । चीडके असख्य उन्नत वृक्षोंसे पहाड व हरे-हरे धान्यके खेत बडे ही शोभायमान होते हैं ।
अनन्तनाग - यह काश्मीरका एक जिला है । यहाँ उल्लेखनीय दो चश्मे हैं । एक गन्धकका चश्मा है, जो मस्जिदके पास है और जिसका जल चर्मरोगोंके लिये खास गुणकारी है। दूसरे चश्मेसे कई कुण्ड बना दिये गये हैं। यहाँ गन्बे (कालीन) विशेष प्रसिद्ध है।
अच्छावल - यह काश्मीरके द्रष्टव्य स्थानोंमेंसे एक है। यहाँ भी कई झरने हैं, जो बहुत मशहूर हैं | बाग फव्वारोसे सजा हुआ है । कहते हैं कि ये फव्वारे जहाँगीरकी बीबी नूरजहाँने अपने मनोविनोदके लिये बनवाये थे। यहाँ दर्शको की भीड बनी रहती है। यहाँ ५-५, ७-७ सेरकी सरक्षित मछलियाँ हैं।
बेरीनाग यहाँ एक ५४ फुट गहरी और पट्कोण नीलवर्णी झील है, जो बढी सुन्दर और देखने योग्य है । झेलम नदी इसी झीलसे निकली है । इसे देखने के लिए हम घोडो द्वारा गये ।
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पहलगाँव - कुकरनागमें ९ दिन रह कर हमलोग १२ जूनको वापिस मटन आ गये और वहाँ पुन ११ दिन ठहरकर २४ जूनको पहलगाँव चले गये। पहलगांव काश्मीर भरमे सबसे सुन्दर जगह है और प्राकृतिक सौन्दर्यका अद्वितीय आगार हैं । एक ओरसे लम्बोदरी और दूसरी ओरसे आडू नदी कल-कल शब्द करती हुई यहाँ मिलकर मटनकी ओर बहती हैं। नदीके दोनो ओर हरे-हरे उत्तु ग कैलके वृक्षोंसे युक्त मनोरम वर्फाच्छादिन पर्वत श्रृंखला है जो बडी भव्य व सुहावनी है । पहाडों और नदियोके बीच के सुन्दर मैदानमें पहलगांव बसा हुआ है। यहाँ हमने १३) रोजपर एक खालसा फोठी किरायेपर की, जो बहुत सुन्दर और हवादार थी । यहाँ ठहरनेके लिए प्लाजा, वजीर, खालसा आदि होटल, कोठियाँ, मकान और तम्बू मिल जाते हैं। दिल्ली से गये ६०० छात्र-छात्राएँ और अध्यापक-अध्यापिकाएँ उक्त होटलों तथा तम्बुओंमें ठहरे थे। यहाँसे हम लोग वाइसरायन और शिकारगा देखने गये, जो पहलगाँव से १-१॥ मीलकी दूरीपर है और सुन्दर मैदान है । १ जुलाईको हम पत्नी सहित घोडोपर सवार होकर चन्दनबाडी गये, जो पहलगाँवसे ८ मील है और जहाँ दो पहाटोके बीच बने वर्षके पुलके नीचेसे लम्बोदरी बहती हुई वही सुहावनी लगती है। वर्षाका पुल देखने योग्य है । इसी परसे दर्शक व अन्य लोग शेषनाग, पचतरणी और अमरनाथ की यात्रार्थ जाते हैं ।
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