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जैन बाला विधामको हमें लेने के लिये भेज दिया था। आरामें स्व० वा० देवकुमारजी रईस द्वारा स्थापित जैनसिद्धान्त-भवन और श्रीमती विदुषी पण्डिता चन्दाबाईजी द्वारा सस्थापित जैन बाला विथाम तथा वहां प्रतिष्ठित श्री १००८ बाहुबलिस्वामीको विशाल खड़गासन मूर्ति वस्तुत जैन भारतकी आदर्श वस्तुएँ हैं। आरा आनेवालोको जैनमन्दिरोके अलावा इन्हे अवश्य ही देखना चाहिये। भवन और विश्राम दोनो ही समाजकी अच्छी विभूति है। यहाँ स्व० श्रीहरिप्रसादजी जैन रईसको औरमे कालेज, लायनेरी आदि कई सस्थाएं चल रही है । आरामे चलकर बनारस आये और अपने चिरपरिचित स्याद्वादमहागिद्यालयमें ठहरे । सयोगसे विद्यालयके सुयोग्य मत्री मौजन्यमूर्ति वा० सुमतिलालजीमे भेंट हो गई। आपके मन्त्रित्वकालमें विद्यालयने बहुत उन्नति की है । कई वर्पसे आप गवर्नमेंट सविससे रिटायर्ड है और समाजसेवा एव धर्मोपासनामें ही अपना समय व्यतीत करते हैं। आपका धार्मिक प्रेम प्रशसनीय है । यहां अपने गुरुजनो और मित्रोके सम्पर्कमें दो दिन रहकर वडे आनन्दका अभूभव किया। स्याद्वादमहाविद्यालयके अतिरिक्त यहांकी विद्वत्परिपद्, जयधवला कार्यालय मीर भारतीय ज्ञानपीठ प्रभति ज्ञानगोष्ठिा जनसमाज और साहित्यके लिए क्रियाशीलताका सन्देश देती हैं। इनके द्वारा जो कार्य हो रहा है वह वस्तुत' समाजके लिये शुभ चिह्न है । मैं तो समझता हूँ कि समाज में जो कुछ हरा-भरा दिस रहा है वह मख्यतया स्याद्वादमहाविद्यालयकी ही देन है और जो उसमें क्रियाशीलता दिख रही है वह उक्त सस्थाओके सचालकोकी चीज है । आशा है इन सस्थाओंसे समाज और साहित्यके लिए उत्तरोत्तर अच्छी गति मिलती रहेगी।
इस प्रकार राजगृहकी यात्राके साथ आरा और बनारमकी भी यात्रा हो गई और ता० २४ मार्चको सुबह साढे दस बजे यहां यरसावा हमलोग सानन्द सकुशल वापिस आ गये।