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________________ मिला । वाबू साहबको मैं एक सफल व्यापारी और रईसके अतिरिक्त कुछ नही जानता था, पर मैंने उन्हें व्यक्तित्वशाली, चिन्ताशील और कर्मण्य पहले पाया-पीछे व्यापारी और रईस। आप अपनी तारीफसे बहत दूर रहते हैं और चुपचाप काम करना प्रसन्द करते हैं। आप जिस उत्तरदायित्वको लेते हैं उसे पूर्णतया निभाते हैं । आपको इससे बडी घृणा है जो अपने उत्तरदायित्वको पूरा नहीं करते । आपके हृदयमें जैन सस्कृतिके प्रचारकी बडी तीन लगन है। आप आधुनिक ढगसे उसका अधिकाधिक प्रचार करने के लिए उत्सुक हैं । जिन वडे-बडे व्यक्तियोसे, विद्वानोंसे और शासकोसे अच्छे-अच्छोकी मित्रता नही हो पाती उन सबके साथ आपकी मित्रता-दोस्ताना और परिचय जान कर मैं बहुत आश्चर्यान्वित हुआ। सेठ पद्मराजजी रानीवाले और अर्जुनलालजी सेठीके सम्बन्धकी कई ऐसी बातें आपने बतलाईं, जो जैन इतिहासको दृष्टिसे सकलनीय हैं । आपके एकहरे दुर्वल शरीरको देख कर सहसा आपका व्यक्तित्व और चिन्ताशीलता मालूम नहीं होती, ज्यो-ज्यों आपके सम्पर्क में आया जाये त्यो-स्यो वे मालूम होते जाते हैं। वस्तुत समाजको उनका कम परिचय मिला है। यदि वे सचमुच में प्रकट रूपमें समाजके सामने आते और अपने नामको अप्रकट न रखते तो वे सबसे अधिक प्रसिद्ध और यशस्वी बनते । अपनी भावना यही है कि वे शीघ्र स्वस्थ हो और उनका सकल्पित वीरशासनसघका कार्य यथाशीघ्र प्रारम्भ हो। राजगृहके कुछ शेष स्थान बर्मी बौद्धोका भी यहाँ एक विशाल मन्दिर बना हुआ है । आज कल एक वर्मी पुजी महाराज उसमें मौजूद हैं और उन्हीकी देखरेख में यह मन्दिर है । जापानियोंकी ओरसे भी वौद्धोका एक मन्दिर बन रहा था, किन्तु जापानसे लडाई छिड जाने के कारण उसे रोक दिया गया था और अब तक रुका पड़ा है। मुसलमानोने भी राजगृहमें अपना तीर्थ बना रखा है । विपुलाचलसे निकले हए दो कुण्डोपर उनका अधिकार है । एक मस्जिद भी बनी हुई है । मुस्लिम यात्रियोके ठहरने के लिये भी वही स्थान बना हुआ है और कई मुस्लिम वासिंदाके रूपमें यहाँ रहते हुए देखे जाते हैं । कुछ मुस्लिम दुकानदार भी यहां रहा करते हैं। सिक्खोके भी मन्दिर और पुस्तकालय आदि यहाँ है। कुडोंके पास उनका एक विस्तृत चबूतरा भी है। ब्रह्मकुडके पास एक कुड ऐसा बतलाया गया जो हर तीसरे वर्ष पडने वाले लोडके महीनेमें ही चालू रहता है और फिर बन्द हो जाता है । परन्तु उसका सम्बन्ध मनुष्य कृत कलासे जान पडता है। राजगृहकी जमीदारी प्राय मुस्लिम नवावके पास है, जिसमेंसे रुपयामें प्राय चार आना (एक चौथाई) जमीदारी सेठ साह शान्तिप्रसादजी डालमियानगरने नवाबसे खरीद ली है। यह जानकर खुशी हुई कि जमीदारीके इस हिस्सेको आपने दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र राजगृहके लिये ही खरीदा है। उनके हिस्सेकी जमीनमे सर्वत्र S P Jain के नामसे चिन्ह लगे हुए है, जिससे आपको जमीनका पार्थक्य मालूम हो जाता है । और भी कुछ लोगोने नवाबसे छोटे-छोटे हिस्से खरीद लिए है। राजगहमे खाद्य सामग्री तेज तो मिलती है। किन्तु बेईमानी बहुत चलती है। गेहओको अलगसे खरीद कर पिसानेपर भी उसमें चौकर बहुत मिला हुआ रहता था। आटा हमें तो कभी अच्छा मिलकर नही दिया। बा० छोटेलालजीने तो उसे छोड ही दिया था। क्षत्रके मुनीम और आदमियोंसे हमें यद्यपि अच्छी मदद मिली, लेकिन दूसरे यात्रियोके लिये उनका हमें प्रमाद जान पड़ा है। यदि वे जिस कार्यके लिये नियुक्त है उसे आत्मीयताके साथ करें तो यात्रियोको उनसे पूरी सदद और सहानभति मिल सकती है। आशा है वे अपने कर्तव्यको समझ निष्प्रमाद होकर अपने उत्तरदायित्वको पूरा करेंगे । आरा और बनारस राजगहमें २० दिन रह कर ता०१८ मार्चको वहाँ से आरा आये। वहीं जैन सिद्धान्तभवनके अध्यक्ष प० नेमिचन्द्रजी ज्योतिषाचार्य के मेहमान रहे । स्टेशनपर मापने प्रिय प० गुलाबचन्द्रजी जैन, मैनेजर -३६५ -
SR No.010322
Book TitleJain Tattvagyan Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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