SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 259
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ डाक्टर हीरालाल जैन लिखते हैं'--'यह नग्न, उत्तरमुख खड्गासन मूर्ति समस्त संसारको आश्चर्यकारी वस्तुओमेसे है। एशिया खण्ड ही नही, समस्त भूतलका विचरण कर आइये, गोम्मटेश्वरकी तुलना करनेवाली मूत्ति आपको क्वचित् ही दृष्टिगोचर होगी। बडे-बडे पश्चिमीय विद्वानोके मस्तिष्क इस मूत्तिकी कारीगरीपर चक्कर खा गये हैं। इतने भारी और प्रबल पाषाणपर सिद्धहस्त कारीगरने जिस कौशलसे अपनी छैनी चलाई है उससे भारतके मूत्तिकारोका मस्तक सदैव गर्वसे ऊंचा उठा रहेगा । यह सम्भव नही जान पडता कि ५७ फुटकी मूत्ति खोद निकालनेके योग्य पाषाण कही अन्यत्रसे लाकर इस ऊंची पहाडीपर प्रतिष्ठित किया जा सका होगा। इससे यही ठीक अनुमान होता है कि उसी स्थानपर किसी प्रकृतिदत्त स्तम्भाकार चट्टानको काटकर इस मूर्ति का आविष्कार किया गया है। कम-से-कम एक हजार वर्षसे यह प्रतिमा सूर्य, मेघ, वायु आदि प्रकृतिदेवीकी अमोघ शक्तियोसे बातें कर रही हैं। पर अब तक उसमें किसी प्रकारकी थोडी भी क्षति नही हुई। मानो मृत्तिकारने उसे आज ही उद्घटित की हो।' इस मृत्तिके वारेमे मदनकीतिने पद्य ७ में लिखा है कि 'पाँचसो आदमियोके द्वारा इस विशाल मूर्तिका निर्माण हुआ था और आज भी देवगण उसकी सविशेष पूजा करते है ।' प्राकृत निर्वाणकाण्ड और अपभ्रश निर्वाणमक्ति में भी देवोद्वारा उसकी पूजा होने तथा पुष्पवृष्टि (केशरकी वर्पा) करनेका उल्लेख है। इन सब वर्णनोंसे जैनपुरके दक्षिण गोम्मटदेवकी महिमा और प्रभावका अच्छा परिचय मिलता है। विश्वसेन नपद्वारा निष्कासित शान्तिजिन मदनकीर्ति और उदयकीर्तिके उल्लेखोसे मालूम होता है कि विश्वसेन नामके किसी राजा द्वारा समुद्रसे श्रोशान्ति जिनेश्वरकी प्रतिमा निकाली गई थी, जिसका यह अतिशय था कि उसके प्रभावसे लोगोके क्षुद्र उपद्रव दूर होते थे और लोगोको वहा सुख मिलना था। यद्यपि मदनकीर्तिके पद्य ९के उल्लेखसे यह ज्ञात नही होता कि शान्तिजिनेश्वरकी उक्त प्रतिमा कहां प्रकट हुई ? पर उदयकीर्तिके निर्देशसे विदित होता है कि वह प्रतिमा मालवतीमें प्रकट हई थी। मालवती सम्भवत मालवाका ही नाम है। अस्तु । पुष्पपुर-पुष्पदन्त पुष्पपुर पटना (विहार) का प्राचीन नाम है। सस्कृत साहित्यमें पटनाको पाटलिपत्रके सिवाय कुसुमपुरके नामसे भी उल्लेखित किया गया है। अतएव पुष्पपुर पटनाका ही नामान्तर जान पडता है। मदनकीर्तिके पद्य १२ के उल्लेखानुसार वहां श्रीपष्पदन्त प्रभुकी सातिशय प्रतिमा भूगर्भसे निकली थी, जिसकी व्यन्तरदेवो द्वारा बडी भवितसे पूजा की जाती थी। मदनकीतिके इस सामान्य परिचयोल्लेखके अलावा पुष्पपुरके श्रीपुष्पदन्तप्रभुके वारेमें अभीतक और कोई उल्लेख या परिचयादि प्राप्त नहीं हुआ। १ शिलालेखसग्रह, प्रस्तावना पृ० १७-१८ । २ गोम्मटदेव वदमि पचसय धणुह-देह-उच्चत्त । देवा कुणति बुट्टी केसर-कुसुमाण तस्स उवरिम्मि ॥२५॥ ३ वदिज्जइ गोम्मटदेउ तित्थ, जसु अणु-दिण पणवइ सुरह सत्यु । ४ मालव सति वदउ पवित्त, विससेणराय कड्डिउ निरुत्तु ।। ५ 'विविधतीर्थकल्प' गत 'पाटलिपुत्रनगरकल्प' पृ० ६८ । - २३७
SR No.010322
Book TitleJain Tattvagyan Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy