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________________ नागग्रह - नागहृदेश्वर विविधतीर्थंकल्पमे चौरासी तीर्थोके नामोको गिनाते हुए उसके कर्ता जिनप्रभसूरिने नागद्रह अथवा नागहृदमें श्रीनागहदेश्वर (पार्श्वनाथ) तीर्थका निर्देश किया है। प्राकृतनिर्वाणकाण्डकार तथा उदयकीर्तिने भी नागदहमें श्रीपार्श्वस्वयम्भुदेवकी वन्दना की है। इस तीर्थके उपलब्ध उल्लेखोमें मदनकीर्तिका पद्य १३ गत उल्लेख प्राचीन है और कुछ सामान्य परिचयको भी लिये हुए है । इस परिचयमें उन्होने लिखा है कि श्रीनागहदेश्वर जिन कोढ आदि अनेक प्रकारके रोगो तथा अनिष्टोको दूर करनेसे लोगोके विशेष उपास्य थे और उनका यह अतिशय लोकमें प्रसिद्धिको प्राप्त था । इससे प्रकट है कि यह तीर्थ आजसे आठसो वर्ष पहले का है । 'नागद्रह' नागदाका प्राचीन नाम मालूम होता है । जो हो । पश्चिमसमुद्रतटस्य चन्द्रप्रभ मदनकीर्तिने पद्य १६ में पश्चिम समुद्रतटके जिन चन्द्रप्रभ प्रभुका अतिशय एव प्रभाव वर्णित किया है उनका स्थान कहाँ है ? उदयकीर्तिने उन्हें पश्चिम समुद्रपर स्थित तिलकापुरीमें वतलाया है । यह तिलकापुरी सम्भवत सिन्ध और कच्छके आस-पास कही रही होगी । अपने समय में यह तीर्थं काफी प्रसिद्ध हा प्रतीत होता है । छाया-पार्श्वभु इस तीर्थका मुनि मदनकीर्ति, जिनप्रभसूरि और मानवसहिताकार शान्तिविजय इन तीन विद्वानोंने उल्लेख किया है । मदनकीर्तिने पद्य १७ के द्वारा उसे सिद्धशिलापर और जिनप्रभसूरि" तथा शान्तिविजयने माहेन्द्र पर्वत और हिमालय पर्वतपर बतलाया है । आश्चर्य नही मदनकीर्तिको सिद्ध शिलासे माहेन्द्र पर्वत अथवा हिमालय ही विवक्षित हो । यदि ऐसा हो तो कहना होगा कि माहेन्द्र पर्वत अथवा हिमालयपर कही यह तीर्थ रहा है और वह छायापार्श्वनाथतीर्थ के नामसे प्रसिद्ध था । मालूम नही, अब उसका कोई अस्तित्व है अथवा नही ? आश्रम नगर-मुनिसुव्रतजिन मुनि मनकीर्ति पद्य २८ गत उल्लेखानुसार आश्रममें, प्राकृतनिर्वाणकाण्डकार के कथनानुसार आशारम्यनगरमें, मुनि उदय कीर्तिके' उल्लेखानुसार आश्रम में और जिनप्रभसूरि, मुनि शीलविजय " तथा शान्ति विजयके " वर्णनानुसार प्रतिष्ठानपुर १२ में गोदावरी (बाणगङ्गा) के किनारे एक शिलापर प्राचीन समय में १ 'कलिकुण्डे नागह्रदे च श्रीपार्श्वनाथ । ' - विविधतीर्थकल्प पृ० ८६ । २ प्रा० नि० का० गाथा २० । ३ 'नायद्दह पासु सयभुदेउ, हउ वदउ जसु गुण णत्थि छेव ।' ४ 'पच्चिमसमुद्दससि - सख-वण्णु, तिलयापुरि चदप्पहवण्णु ।' ५ ' माहेन्द्र पर्वते छायापार्श्वनाथ | हिमाचले छायापार्श्वो मन्त्राषिराज श्रीस्फुलिंग' ।' -विविधतीर्थकल्प पृ० ८६ । ६ 'माहेन्द्र पर्वत में छायापार्श्वनाथका तीर्थ है । हिमालय पर्वतमें छाया पार्श्वनाथ मन्त्राधिराज मोर स्फुलिंग पार्श्वनाथका तीर्थ है ।' - मानवधर्मसहिता पृ० ५९९-६०० (वि०स० १९५५ में प्रकाशित संस्करण) । प्रा० नि० का० गाथा २० । ८ अपभ्रशनिर्वाणभक्ति गा० ६ । ९ विविधतीर्थकल्प पृ० ५९ । १० तीर्थमाला | ११ मानवधर्मसहिता, पृ० ५९९ । १२ प्रेमोजीने लिखा है कि इसका वर्तमान नाम पैठण है, जो हैदराबादके औरगाबाद जिलेकी एक तहसील है-- ( जैन सा० और इति० पृ० २३८ का फुटनोट) । ७ २३८ - -
SR No.010322
Book TitleJain Tattvagyan Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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