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________________ इस तरह उपर्युक्त आधारोंसे द्रव्यसग्रहके कर्त्ता मुनि नेमिचन्द्र वे ही नेमिचन्द्र ज्ञात होते हैं, जो वसुनन्दि सिद्धान्तिदेवके गुरु और नयनन्दि सिद्धान्तिदेव ( सिद्धान्तपारगत ) ' के शिष्य हैं । सम्भवत इसीसे - गुरु शिष्योको 'सिद्धान्तिदेव' होनेसे - ब्रह्मदेव उन्हें (द्रव्यसग्रहकार मुनि नेमिचन्द्रको) भी 'सिद्धान्तिदेय' मानते और उल्लिखित करते हुए देखे जाते हैं । इसके प्रचुर प्रमाण उनकी द्रव्यसग्रहवृत्ति में उपलब्ध हैं । (घ) समय • हम ऊपर कह आये हैं कि नयनन्दिने अपना 'सुवसणचरिउ' विक्रम स० ११०० में पूर्ण किया है । अत नयमन्दिका अस्तित्व समय वि० स० ११०० है । यदि उनके शिष्य नेमिचन्द्रको उनसे अधिक-से-अधिक २५ वर्ष पीछे माना जाय तो वे लगभग वि० स० ११२५ के ठहरते हैं । उधर इनके शिष्य वसुनन्दिका समय विक्रमकी १२ वी शताब्दीका पूर्वार्ध अर्थात् वि० स० ११५० माना जाता है, जो उचित है । इस भी नयनन्दि (वि०स० ११०० ) और वसुनन्दि (वि० स० ११५०) के मध्य होनेवाले इन नेमिचन्द्रका समय विक्रम स० ११२५ के आस-पास होना चाहिए । (ड) गुरु-शिष्य यद्यपि द्रव्यसग्रहकारने न अपने किसी गुरुका उल्लेख किया है और न किसी शिष्यका । उनके उपलब्ध लघु और बृहद् दोनो द्रव्यसग्रहोमें उन्होने अपना नाममात्र दिया है । इतना विशेष है कि लघुद्रव्यसग्रहमें उसकी रचनाका निमित्त भी बताया है । और वह है सोम ( राजश्रेष्ठी) । उन्हीके बहाने से भव्यजीवोके कल्याणार्थ उन्होने उसे रचा है । फिर भी वसुनन्दिके उल्लेखानुसार उनके गुरु नयनन्दि हैं और दादा गुरु श्रीनन्दि | वसुनन्दि उनके साक्षात शिष्य हैं । वसुनन्दिने अपना 'उपासकाध्ययन', जो अर्थत आचार्य परम्परासे मागत था, शब्दत उन्हीसे सिद्धान्तका अध्ययन करके उनके प्रसादसे पूरा किया था । ग्रन्थकारके और भी शिष्य रहे होगे, पर उनके जाननेका अभी तक कोई साधन प्राप्त नही है । (च) प्रभाव . यो तो ग्रथकारने स्वय अपना कोई परिचय नही दिया, जिससे उनके प्रभावादिका पता चलता, तथापि उत्तरवर्ती ग्रथकारोद्वारा उनका स्मरण किया जाना और 'भगवान्' जैसे सम्मानसूचक शब्दोके साथ उनके द्रव्यसग्रहकी गाथाओंका उद्धरण देना आदि बातोंसे उनके प्रभावका पता चलता है । वसुनन्दि सिद्धान्तिदेव तो उन्हें 'जिनागमरूपी समुद्रकी वेला तरंगोंसे घुले हृदयवाला' तथा 'समस्त जगतमें विख्यात' बतलाते हैं । इससे वे तत्कालीन विद्वानोमें निश्चय ही एक प्रभावशाली एव सिद्धान्तवेत्ता विद्वान् रहे होगे, यह स्पष्ट ज्ञात होता 1 १ वसुनन्दि, उपासकाध्ययन गा० ५४२ । २ प ० जुगल किशोर मुख्तार, पुरातन जैन वाक्य सूची, प्रस्तावना पृ० १०० । ३ सोमच्छलेण रइया पयत्यलक्खणकराउ गाहाओ । भव्ववयार - णिमित्त गणिणा सिरिणेमिचदेण ||- लघुद्रव्यस० गा० २५ । ४ वसुनन्दि सिद्धान्तिदेव, उपासकाध्ययन गा० ५४०, ५४१, ५४२ । ५. वही, गा० ५४४ । ६ ब्रह्मदेव, द्रव्यसग्रह - संस्कृतटीका, पृ० ५८, १४९, २२९ । तथा आशाधर, अनगारघर्मामृतटीका पृ० ४, १०९, ११६, ११८ | और जयसेन, पञ्चास्तिकाय - तात्पर्यवृत्ति पृ० ६, ७, १६३, १८६ ॥ - २०९ - न- २७
SR No.010322
Book TitleJain Tattvagyan Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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