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________________ (छ) स्थान ब्रह्मदेवके उल्लेखानुसार ग्रन्थकारने अपने दोनो द्रव्यसग्रहोकी रचना 'आश्रम' नामक नगरके श्रीमुनिसुव्रततीर्थकरचैत्यालयमें रहते हुए की थी। यह 'आश्रम' नगर उस समय मालवाके अन्तर्गत था और मालवासम्राट् धाराधिपति परमारवशी भोजदेवके प्रान्तीय-प्रशासक परमारवशीय श्रीपालद्वारा वह प्रशासित था। 'सोम' नामक राजश्रेष्ठी उनका प्रभावशाली एव विश्वसनीय अधिकारी था, जिसके अधिकारमें खजाना आदि कई महत्त्वपूर्ण विभाग थे । इन सोमश्रेष्ठीके अनुरोधपर ही श्रीनेमिचन्द्र मिद्धान्तिदेवने पहले २६ गाथात्मक पदार्थलक्षणरूप 'लघुद्रव्यसंग्रह' और फिर पीछे विशेष तत्त्वज्ञानके लिए 'बृहद्वव्यसग्रह रचा था। ब्रह्मदेवने अपने इस उल्लेखमें सोमश्रेष्ठीको 'परम आध्यात्मिक भव्योत्तम' बताया है, जिससे सोमश्रेष्ठीकी उत्कट आध्यात्मिक-जिज्ञासाका परिचय मिलता है। इसी उल्लेखसे जहाँ यह भी ज्ञात होता है कि उक्त 'आषम' नेमिचन्द्रसिद्धान्तिदेवके स्थायी अथवा अस्थायी निवासके रूप में विश्रत था. और सोमश्रेष्ठी जैसे आध्यात्मिक सुधारसपिपासु वहाँ पहुँचते थे वहीं इस पावन स्थानका महत्त्व भी प्रकट होता है । लगता है कि उन दिनो जैन परम्परामें इस स्थानकी प्रसिद्धि एव मान्यता वहांके उक्त चैत्यालयमें प्रतिष्ठित बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथकी सातिशय, मनोज्ञ एव आकर्षक प्रतिमाके कारण रही है। मूर्ति के इस अतिशयका उल्लेव मुनि मदनकीतिने शासनचतुस्पिशिका (पद्य २८), निर्वाणकाण्डकारने प्राकृत-निर्वाणकाण्ड (गा०२०) और मुनि उदयकीर्तिने अपभ्रश-निर्वाणभक्ति (गा० ६) में भी किया है। इन उल्लेखोसे स्पष्ट जान पडता है कि उक्त 'आश्रम' नगर एक प्रसिद्ध और पावन दिगम्बर तीर्थस्थान रहा है। इस स्थानकी वर्तमान स्थितिके बारेमें पं० दीपचन्द्रजी पाण्डया और डा० दशरथ शर्माने ऊहापोह एव प्रमाणपूर्वक विचार करते हुए लिखा है कि 'आश्रम' नगर, जिसे साहित्यकारोंने आश्रम, आशारम्यपट्टण", आश्रमपत्तन, पट्टण और पुटभेदनके नामसे उल्लेखित किया है, राजस्थानके अन्तर्गत कोटासे उत्तरपूर्वकी ६ 'अथ मालवदेशे घारानामनगराधिपतिभोजदेवाभिधानकलिकालचक्रवर्तिसम्बन्धिन श्रीपालमण्डलेश्वरस्य सम्बन्धिन्याश्रमनामनगरे श्रीमुनिसुव्रततीर्थकरचैत्यालये शुद्धात्मद्रव्यसवित्तिसमुत्पन्नसुखामृतरसास्वादविपरीतनारकादिदु खभयभीतस्य परमात्मभावनोत्पन्नसुखसुधारसपिपासितस्य भेदाभेदरत्नत्रयभावनाप्रियस्य भव्यवरपुण्डरीकस्य भाण्डागाराद्यनेकनियोगाधिकारिसोमाभिधानराजश्रेष्ठिनो निमित्त श्रीनेमिचन्द्रसिद्धान्तिदेवं पूर्व षड्वंशतिगाथाभिलघुद्रव्यसग्रह कृत्वा पश्चाद्विशेषतत्त्वज्ञानार्थ विरचितस्य बृहद्रव्यसग्रहस्याधिकारशुद्धिपूर्वकत्वेन वृत्ति प्रारभ्यते ।'-ब्रह्मदेव, बृहद्दन्यस० वृत्ति, पृ० १-२ । २ 'क्या पाटण-केशोराय हो प्राचीन आश्रमनगर है?' शीर्षक लेख, वीरवाणी (स्मारिका) वर्ष १८, अक १३, पृ० १०९। ३ 'आश्रमपत्तन ही केशोराय पट्टन है' शीर्षक निबन्ध, अनेकान्त (छोटेलाल स्मृति अक) वर्ष १९, कि. १-२, पृ० ७० । ४ मदनकीर्ति, शासनचतुस्थिशिका पद्य २८ तथा उदयकीति अपभ्रशनिर्वाणभक्ति गा०६ । ५ निर्वाणकाण्ड गा० २० । ६ नयचन्द्रसूरि, हम्मीरकान्य ८-१०६ । ७ ८ चन्द्रशेखर, सुर्जनचरितमहाकाव्य ११-२२, ३९ । ९ जल और स्थल मागोंसे व्यापार करनेवाले नदी-किनारे स्थित नगरको पुटभेदन और मुख्यत बन्दरगाह को पत्तन या पट्टन कहा जाता है, चाहे वह समुद्रतटपर हो या नदी-तटपर। आश्रमनगरके लिए ये दोनो शब्द प्रयुक्त हो सकते हैं, क्योकि वह चम्बलके किनारे स्थित है। -२१०
SR No.010322
Book TitleJain Tattvagyan Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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