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________________ तथा उन्हीके शिष्य नेमिचन्द्रका वसुनन्दिने अपने गुरुम्पगे स्मरण किया है और ये नेमिचन्द्र वे ही नेमिचन्द्र हो, जो द्रव्यसग्रहके कर्ता है, तो कोई आश्चर्य नही है। ३ द्रव्यसग्रहके सस्कृत-टीकाकार ब्रह्मदेवने द्रव्यसग्रहकार नेमिचन्द्रका 'सिद्धान्तिदेव' उपाधिके साथ अपनी सस्कृत-टीकाके मध्यम तथा अधिकारोके अन्तिम पुष्पिका-वाक्यो में उल्लेख किया है। उधर वसुनन्दि और उनके गुरु नेमिचन्द्र भी 'सिद्धान्तिदेव' की उपाधिसे भूपित मिलते है । अत असम्भव नही कि ब्रह्मदेव के अभिप्रेत नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव और वसुनन्दिके गुरु नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव एक हो। ४ ब्रह्मदेवने द्रव्यसग्रहके प्रथम अधिकारफे अन्तम और द्वितीय अधिकारमे पहले वसुनन्दि-श्रावकाचारकी दो गाथाएँ न० २३ और न०२४ उद्धत करते हुए लिखा है कि 'इसके आगे पूर्वोक्त छहो द्रव्योंका चूलिकारूपसे विशेष व्याख्यान किया जाता है। वह इस प्रकार है।' यह स्थानिकावाश्य देकर उन दोनो गाथाओको दिया गया है और द्रव्यसग्रहकारको गाथाओको तरह ही उनको व्याख्या प्रस्तुत की है। व्याख्याके अन्तमें 'लिका' शब्दका अर्थ बतलाते हुए लिखा है कि विशेष व्याख्यान, अथवा उयतानुक्त व्याख्यान और उक्तानुक्त मिश्रित व्याख्यानका नाम चूलिका है। आशय यह है कि ब्रह्मदेवने वसुनन्दिकी गाापामो (न० २३ व २४) को जिस ढगसे यहाँ प्रस्तुत किया है और उनकी व्याख्या दी है, उससे विदित होता है कि वे वसुनन्दिके गुरु नेमिचन्द्रको ही द्रव्यसग्रहका कर्ता मानते थे और इसीलिए वसुनन्दिको उक्त विशिष्ट गाथाओ और अपनी व्यारुपाद्वारा उनके गुरु (नेमिचन्द्र-द्रव्यसग्रहकार) के सक्षिप्त कथन का उन्होने विस्तार किया है। और यह कोई असगत भी नहीं है, क्योकि गुरुके हृदयस्थ अभिप्रायका जितना जानकार एव उद्धाटक साक्षात्-शिष्य हो सकता है उतना प्राय अन्य नही। उक्त गाथाओकी ब्रह्मदेवने उसी प्रकार व्याख्या की है जिस प्रकार उन्होंने व्यसग्रहको समस्त गाथाओंको की है। स्मरण रहे कि ब्रह्मदेवने अन्य आचार्योंके भी वीसियों उद्धरण दिये है, पर उनमेंसे उन्होने किसी भी उदरणकी ऐसी व्याख्या नहीं की और न इस तरहसे उन्हें उपस्थित किया है-उन्हें तो उन्होने 'तदुक्तं', 'तथा चोयत' जैसे शब्दोंके साथ उद्धृत किया है। जब कि वसुनन्दिको उक्त गाथाओंको द्रव्यसग्रहकारकी गाथाओकी तरह 'मत पर पूर्वोक्तद्रव्याणा चलिफारूपेण विस्तर-व्याख्यान क्रियते । तद्यथा---'जैसे उत्यानिका-वाक्यके साथ दिया है। मत ब्रह्मदेवके उपर्युक्त प्रतिपादनपरसे यह निष्कर्ष सहज ही निकला जा सकता है कि उन्हें वसुनन्दिके गुरु नेमिचन्द्र ही द्रव्यसग्रहके कर्ता अभीष्ट है-वे उन्हें उनसे भिन्न व्यक्ति नही मानते हैं। १. • श्रीनेमिचन्द्रसिद्धान्तिदेवं पूर्व .'-१०२। तिष्ठन्तीत्यभिप्रायो भगवता श्रीनेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेवानामिति ।'-०५८। 'इति श्रीनेमिचन्द्रसिद्धान्तिदेवविरचिते द्रव्यसग्रहान्थे प्रथमोऽधिकार समाप्त ।' 'इति श्रोनेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेवविरचिते द्रव्यसग्रहग्रन्थे द्वितीयोऽधिकार समाप्त ।' 'इति श्रीनेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेवविरचितस्य द्रव्यसनहाभिधानग्रन्थस्य श्रीब्रह्मदेवकृतवृत्ति समाप्त ।' -पु० २४१ । २ आशाधर, सा० घ० टी०, ४-५२, अनगा०प०टी०, ८-८८ । ३ बृहद्रव्यसग्रह-सस्कृतटोका पृ० ७६ । ४. बृहद्रव्यसग्रह-सस्कृतटीका, पृ० ८० ।
SR No.010322
Book TitleJain Tattvagyan Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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