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. जैन-दर्शन
हीनयान बौद्ध विचारधारा के दो भेद हैं-वैभाषिक और सौत्रान्तिक । वैभाषिक सर्वास्तिवादी हैं। .सर्वास्तिवादी. का अर्थ है 'सब कुछ है'-इस सिद्धान्त को मानने वाला । यहाँ पर सब कुछ से तात्पर्य जड़ और चैतन्य से है। आन्तरिक और बाह्य दोनों तत्त्व ज्ञान और जड़ रूप से सत् हैं। ये नित्य न होकर अनित्य हैं, अर्थात् स्थायी न होते हुए क्षणिक हैं। सौत्रान्तिक भी यही मानता है कि ज्ञान और जड़ पदार्थ दोनों ही क्षणिक हैं। वैभाषिक और सौत्रान्तिक में मुख्य भेद यह है कि वैभाषिक बाह्य अर्थ का सीधा प्रत्यक्ष मान लेता है, जबकि सौत्रान्तिक की मान्यता के अनुसार ज्ञान के आकार से बाह्य अर्थ का अनुमान लगाया जाता है । अर्थ के अनुसार ज्ञान में आकार आता है और उस आकार से अर्थ का ज्ञान होता है । अर्थ का ज्ञान सीधा अर्थ से नहीं होता, अपितु तदाकार बुद्धि से होता है। दूसरे शब्दों में कहा जाय तो वैभाषिक की मान्यता के अनुसार ज्ञान, बुद्धि या चेतना निराकार है, जबकि सौत्रान्तिक उसे साकार मानता है । जैसा पदार्थ होता है वैसा ही बुद्धि में प्राकार या जाता है । उसो प्राकार से हमें बाह्य पदार्थ के प्राकार का ज्ञान होता है । वैभाषिक की धारणा के अनुसार बाह्य पदार्थ का सीधा प्रत्यक्ष होता है। सौत्रान्तिक के मतानुसार वाह्य पदार्थ का सीधा प्रत्यक्ष न होकर बुद्धि के आकार के द्वारा उसका ज्ञान होता है। वैभाषिक का पदार्थज्ञान प्रत्यक्ष (Direct) है और सौत्रान्तिक का पदार्थज्ञान परोक्ष (Indirect)-ऐसा भी कहा जा सकता है । तात्पर्य यह है कि वैभाषिक और सौत्रान्तिक दोनों ही वाह्य अर्थ की स्वतंत्र सत्ता में विश्वास रखते हैं, जो कि यथार्थवाद के लिए आवश्यक है।
चार्वाक पूर्ण रूप से जड़वादी है । वह चेतना या प्रात्मा नामक भिन्न तत्त्व नहीं मानता । जिसे हम लोग अात्मा कहते हैं वह वास्तव में जड़ से भिन्न तत्त्व नहीं है अपितु उसी का रूपान्तर है। जगत् चार भूतों की ही रचना है । ये चार भूत अन्तिम सत्य हैं। इनके अतिरिक्त अन्य कोई स्वतन्त्र तत्त्व या सत्य नहीं है । ये चार भूत हैंपृथ्वी, अप, तेज और वायु । इन चार भूतों का एक विशिष्ट संयोग