________________
जैन- दर्शन
सन्देह करने वाला भी अवश्य होता है । इसी प्रकार उसने बाह्य जगत् और ईश्वर का अस्तित्व भी सिद्ध किया । डेकार्ट का दार्शनिक विवेचन बेकन की अपेक्षा अधिक स्पष्ट एवं आगे बढ़ा हुआ था । इसीलिए वह पश्चिम के अर्वाचीन दर्शन का जनक ( Father of Modern Philosophy) गिना जाता है ।
व्यावहारिकता - प्राश्चर्यं श्रौर सन्देह के सिद्धान्त पर विश्वास न करने वाले कुछ दार्शनिक ऐसे भी हैं, जो व्यावहारिकता को ही दर्शन की उत्पत्ति का कारण मानते हैं । वे कहते हैं कि जीवन के व्यवहारपक्ष की सिद्धि के लिए ही दर्शन का प्रादुर्भाव होता है । दर्शन की यह विचारधारा व्यावहारिकतावाद (Pragmatism ) के नाम से प्रसिद्ध है | वास्तव में यह विचारधारा दर्शन की अपेक्षा विज्ञान के अधिक समीप है । इसका दृष्टिकोण भौतिकता - प्रधान है । भारतीय परम्परा में चार्वाक दर्शन का आधार व्यावहारिकतावाद ही था ।
२८
बुद्धिप्रेम - दर्शन का आधार बुद्धिप्रेम ( Love of wisdom ) है, ऐसा कई दार्शनिक मानते हैं । उनकी धारणा के अनुसार दर्शन की उत्पत्ति का कोई बाह्य कारण नहीं है, जिसको आधार बनाकर दर्शन का प्रादुर्भाव हो । मानव अपनी बुद्धि से बहुत प्रेम करता है । वह अपनी बुद्धि का प्रत्येक दृष्टि से हित चाहता है । वह कभी यह नहीं चाहता कि उसकी बुद्धि अविकसित दशा में पड़ी रहे । यह दूसरी वात है कि लोगों को अपनी बुद्धि के विकास के लिए उचित वातावरण व साधन नहीं मिलते । । बुद्धिप्रेम की यह अभिव्यक्ति दर्शन के रूप में प्रकट होती है । इस धारणा के अनुसार दर्शन का कोई अन्य प्रयोजन नहीं होता । बुद्धि को सन्तोष प्राप्त हो, बुद्धि का खूब विकास हो - यही दर्शन का एक मात्र प्रयोजन होता है। दर्शन अपने ग्राप में पूर्ण होता है । उसका साध्य कोई दूसरा नहीं होता । वह स्वयं ही साधन व स्वयं ही साध्य होता है । अँग्रेजी शब्द 'फिलोसोफी' जो कि दर्शन का पर्यायवाची है, ग्रीक भाषा के दो शब्दों से मिल कर बना है । वे शब्द हैं 'फिलोस' और 'सोफिया | फिलोस (Philos ) का अर्थ होता है - प्रेम (Love) और सोफिया ( Sophia) का अर्थ होता है - बुद्धि (Wisdom ) । इन दोनों शब्दों को जोड़ने से 'बुद्धि