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स्याद्वाद.
दृष्टियों का आधार लिया जाता है । इन आठ दृष्टियों में से किसी एक के आधार पर एक धर्म के साथ अन्य धर्मों का अभेद कर लिया जाता है और इस अभेद को दृष्टि में रखते हुए ही उस धर्म का कथन सम्पूर्ण वस्तु का कथन मान लिया जाता है । यही सकलादेश है । विकलादेश में एक धर्म की ही अपेक्षा रहती है और शेष की उपेक्षा । जिस धर्म का कथन अभीष्ट होता है वही धर्म दृष्टि के सामने रहता है । अन्य धर्मों का निषेध नहीं होता, अपितु उनका उस समय कोई प्रयोजन न होने से ग्रहण नहीं होता। यही उपेक्षाभाव है । नय का स्वरूप बताते समय इसका विशेष स्पष्टीकरण किया जाएगा। अब हम सकलादेश की कालादि आठ दृष्टियों का स्वरूप समझने का प्रयत्न करेंगे।
काल-जिस समय किसी वस्तु में अस्तित्व धर्म होता है उसी समय अन्य धर्म भी होते हैं । घट में जिस समय अस्तित्व रहता है उसी समय कृष्णत्व, स्थूलत्व, कठिनत्व आदि धर्म भी रहते हैं । इसलिए काल की अपेक्षा से अन्य धर्म अस्तित्व से अभिन्न हैं।
आत्मरूप-जिस प्रकार अस्तित्व घट का गुण है उसी प्रकार कृष्णत्व, कठिनत्व आदि भी घट के गुण हैं । अस्तित्व के समान अन्य गुरग भी घटात्मक ही हैं । अतः आत्मरूप की दृष्टि से अस्तित्व और अन्य गुरगों में अभेद है। . अर्थ-जिस घट में अस्तित्व है उसी घट में कृष्णत्व, कठिनत्व श्रादि धर्म भी हैं । सभी धर्मों का स्थान एक ही है । अतः अर्थ की दृष्टि से अस्तित्व और अन्य गुणों में कोई भेद नहीं।। ___सम्बन्ध-जिस प्रकार अस्तित्व का घट से सम्बन्ध है उसी प्रकार अन्य धर्म भी घट से सम्बन्धित हैं। सम्बन्ध की दृष्टि से अस्तित्व और इतरगुण अभिन्न हैं।
उपकार-अस्तित्व गुण घट का जो उपकार करता है वही उपकार कृष्णत्व, कठिनत्व आदि गुण भी करते हैं। इसलिए यदि उपकार की दृष्टि से देखा जाय तो अस्तित्व और अन्य गुणों में अभेद है।
गुरिणदेश-जिस देश में अस्तित्व रहता है उसी देश में घट के अन्य
१-स्याद्वादरत्नाकर ४।४४.
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