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जैन-दर्शन
है कि शास्त्रकार ने कितने सुन्दर ढंग से एक सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है । चित्रविचित्र पंख वाला पुस्कोकिल कौन है ? यह स्याद्वाद का प्रतीक है । जैनदर्शन के प्राणभूत सिद्धान्त स्याद्वाद का कसा सुन्दर चित्रण है । वह एक वर्ण के पंख वाला कोकिल नहीं है, अपितु चित्रविचित्र पंख वाला कोकिल है । जहाँ एक ही तरह के पंख होते हैं वहाँ एकान्तवाद होता है, स्याद्वाद या अनेकान्तवाद नहीं । जहाँ विविध वर्ग के पंख होते हैं वहाँ अनेकान्तवाद या स्याद्वाद होता है, एकान्तवाद नहीं। एक वर्ग के पंख वाले और चित्र विचित्र पंख वाले कोकिल में यही अन्तर है। केवलज्ञान भी स्याहादपूर्वक ही होता है। इसे दिखाने के लिए केवलज्ञान होने के पहले यह स्वप्न दिखाया गया है ।
तत्त्व उत्पाद, व्यय और प्रीव्यात्मक है, यह बात पहले लिखी जा चुकी है । उत्पाद, व्यय और प्रीव्य वस्तु के चित्र विचित्र पंग्स हैं। महावीर ने इसी प्रकार के तत्त्वज्ञान का उपदेश दिया। उन्होंने वस्त के स्वम्प का सभी दृष्टियों में प्रतिपादन किया । जो वस्तु नित्य मालूम होती है वह अनित्य भी है। जो वस्तु क्षणिक प्रतीत होती है वह नित्य भी है । नित्यता और अनित्यता दोनों एक दूसरे का स्वरूप समझने के लिये आवश्यक हैं। जहाँ नित्यता की प्रतीति होती है वहाँ अनित्यता अवश्य रहती है। अनित्यता के अभाव में नित्यता की पहचान ही नहीं हो गकती। इसी प्रकार अनित्यता का स्वरूप समझने के लिए नित्यता की प्रतीति अनिवार्य है । यदि पदार्थ में प्रौव्य या नित्यना नहीं है तो अनित्यता की प्रतीति ही नहीं हो मानी । नित्यता और अनित्यता मापेक्ष हैं। एक की प्रतीनि द्वितीय की प्रतीतिपूर्वक ही होती है। अनेकानेक अनित्यप्रतीनियों के बीच जहां एक स्थिर प्रतीति होती है वहीं नित्यत्व या प्रीव्य की प्रतीति है । ध्रीव्य या नित्यत्व का महत्व नभी मालम होता है, जब उसके माय में अनेक अनित्य प्रतीनियाँ होती हैं । अनित्य प्रतीति के न होने पर यह नित्य है' मा जान ही नहीं हो मरना । जहाँ नित्यता की प्रतीति नहीं है, वहाँ 'यह अनित्य है पमा मान ही नहीं दी गकता। नित्यता और अनित्यता दोनों की