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स्याद्वाद
श्रमण भगवान महावीर को केवलज्ञान होने के पहले कुछ स्वप्न पाए थे, ऐसा भगवती सूत्र में उल्लेख है। उन स्वप्नों में से एक स्वप्न इस प्रकार है----'एक बड़े चित्रविचित्र पंखों वाले स्कोकिल को स्वप्न में देख कर प्रतिबुद्ध हुए"। इस स्वप्न का क्या फल है, इनका विवेचन करते हुए कहा गया है कि श्रमरण भगवान् महावीर ने जो चित्रविचित्र पुस्कोकिल स्वप्न में देखा है उसका फल यह है कि वे स्वपरसिद्धान्त का प्रतिपादन करने वाले विचित्र द्वादनांग का उपदेश देंगे। इस वर्णन को पढ़ने से यह मालूम होता
-~-'एगं च णं महं चित्तविचित्तपक्खग पुसकोइलगं सुविणे पासित्ता रणं
पहियुः।-भगवती सूत्र१६६६। २-'जपा समरणे भगवं महावीरे एग महं चित्तविचित्तं जाव पडिबुद्ध नणं समरणे भगवं महावीरे विचित्त ससमयपरसमइयं दुवालसंग गरिमपिन पापवेति पन्नवेति परुवैति। -वही, १६३६