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মানৰ গীং সমাপ্ত के विना न होना । जो चीज जिसके बिना नहीं हो सकती उस चीज के होने पर उसके विना न होने वाली चीज का होना अविनाभाव सम्बन्ध है । धूम अग्नि के विना नहीं हो सकता । धूम के होने पर अग्नि का होना यह अविनाभाव सम्बन्ध है।
अनुमान दो प्रकार का है स्वार्थानुमान और परार्थानुमान ।
स्वार्थानुमान-साध्य के साथ अविनाभाव सम्बन्ध से रहने वाले स्वनिश्चित साधन से साध्य का ज्ञान करना स्वार्थानुमान है। अविनाभाव का एक और लक्षण देखिए । 'सहभावी और क्रमभावी कार्यों का क्रमभाव और सहभावविषयक जो नियम है वह अविनाभाव है ।' कुछ कार्य सहभावी होते हैं और कुछ क्रमभावी। रूप और रस सहभावी हैं । रूप को देखकर रस का अनुमान करना अथवा ग्म-दर्गन से रूप का अनुमान करना सहभावी अविनाभाव है । एक के होने पर दूसरे का होना क्रमभाव है। कृत्तिका के उदित होने पर शकट का उदय होना क्रमभावी अविनाभाव है । कारण और कार्य का सम्बन्ध भी क्रमभाव के अन्तर्गत ग्राता है । अग्नि से धूम की उत्पत्ति क्रमभावी अविनाभाव है। इस प्रकार के अविनाभाव का जव व्यक्ति स्वतः ज्ञान करता है और साध्य के साथ अविनाभावी साधन को देखकर स्वयं साध्य का अनुमान करता है तव जो ज्ञान पैदा होता है वह स्वार्थानुमान है। स्वार्थानुमान के लिए एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति पर निर्भर नहीं रहता । साधन को देकर नाध्य का अनुमान व्यक्ति स्वयं कर लेता है। इसलिए इस प्रकार के अनुमान का नाम 'स्वार्थानुमान' अर्थात् 'अपने लिए अनु
सावन-साधन कितने प्रकार के हैं, इस पर भी जरा विचार पार लें । आचार्य हेमचन्द्र ने पांच प्रकार के साधन माने हैं। ये पांच
-मार्थ स्वनिचितसाध्याविनाभावफलक्षणात् साधनात् ताप्यमानम्'
-प्रमाणमीमांना २६ : - माविमोः महसमभावनियमोऽविनाभाव':
-वही ११२।१०