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जैन दर्शन
स्थान अनुमान कैसे ले सकता है । जो ज्ञान जिस से पूर्व उत्पन्न होता है और जिसका आधार होता है वह ज्ञान तद्र प नहीं हो सकता; अन्यथा पूर्व और पश्चात् का सम्बन्ध ही नष्ट हो जायगा, आधार और आधेय की व्यवस्था ही समाप्त हो जाएगी । अतः तर्क अनुमान से भिन्न है तथा स्वतन्त्र प्रमाण है ।
तर्क की व्याख्या करते हुए यह कहा गया कि व्याप्तिज्ञान तर्क है । व्याप्ति क्या है, इसका स्पष्टीकरण वाकी है । 'व्याप्य के होने पर व्यापक होता ही है अथवा व्यापक के होने पर ही व्याप्य होता हैइस प्रकार का जो नियम है वह व्याप्ति है । धूम और अग्नि के उदाहरण से इसे और स्पष्ट कर लें। धूम व्याप्य है और अग्नि व्यापक है । धूम (व्याप्य) के होने पर अग्नि (व्यापक) होती ही है अथवा अग्नि (व्यापक) के होने पर ही धूम (व्याप्य) होता है । धूम और अग्नि का यह सम्बन्ध व्याप्ति है। जहाँ व्यापक होता है वहाँ व्याप्य हो भी सकता है और नहीं भी । जहाँ अग्नि होती है वहाँ धूम हो भी सकता है और नहीं भी । जहाँ व्याप्य होता है वहाँ व्यापक होता ही है। जहाँ धूम होता है वहाँ अग्नि होती ही है। व्याप्य व्यापक के होने पर ही हो सकता है। धूम अग्नि के होने पर ही हो सकता है। इस प्रकार का जो व्यापक और व्याप्य का सम्बन्ध है वही व्याप्ति है । इस सम्बन्ध का ग्रहण करने वाला ज्ञान तर्क है-ऊह है। __ अनुमान-साधन से साध्य का ज्ञान होना अनुमान है। साधन का अर्थ है हेतु अथवा लिंग । साधन को देख कर तदविनाभावी साध्य का ज्ञान करना अनुमान है। उदाहरण के लिए धूम, जो कि अग्नि का साधन है, उसे देख कर अग्नि, जो कि साध्य है, उसका ज्ञान करना अनुमान है। साधन और साध्य के बीच अविनाभाव सम्बन्ध अवश्य होना चाहिए । अविनाभाव का अर्थ है किसी
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१-'व्याप्तिापकस्य व्याप्ये सति भाव एव. व्याप्यस्य वा तत्रैव भावः' ।
-प्रमाणमीमांसा, १।२।६ २- 'साधनात् साध्यविज्ञानमनुमानम्' ।
-वही ११२७