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जैन-दर्शन सौम्य :
सौक्ष्म्य दो प्रकार का है--अन्त्य और आपेक्षिक' । परमाणु की सूक्ष्मता अन्त्य है, क्योंकि उससे अधिक सूक्ष्मता नहीं हो सकती । अन्य पदार्थों की सूक्ष्मता आपेक्षिक है जैसे केले से आँवला छोटा है, आँवला से बेर छोटा है, अादि ।। स्थौल्य : ___ स्थौल्य भी अन्त्य और आपेक्षिक के भेद से दो प्रकार का है। जगद्व्यापी महास्कन्ध अन्त्य स्थौल्य है । बेर, आँवला, केला आदि स्थौल्य प्रापेक्षिक हैं। संस्थान :
इत्थं लक्षण और अनित्थं लक्षण के भेद से संस्थान दो प्रकार का है । व्यवस्थित आकृति इत्थं लक्षण है । मेघादि की तरह अव्यवस्थित आकृति अनित्थं लक्षण है। भेद:
भेद के छ: प्रकार हैं-उत्कर, चूर्ण, खण्ड, चूणिका, प्रतर और अणुचटन' । करपत्रादि से काष्ठादि का चीरना उत्कर है। गेहूँ, जौ।
आदि का आटा चूर्ण है । घटादि के टुकड़ों को खण्ड कहते हैं। चावल, दाल आदि के छिलके निकलना चूर्णिका है। अभ्रपटलादि का अलग होना प्रतर है । तप्तलोहे के पिण्ड को घनादि से पीटने पर स्फुलिंग का निकलना अणुचटन है । तम :
तम दृष्टि के प्रतिबन्ध का एक कारण है। यह प्रकाश का विरोधी है । नैयायिकादि तम को स्वतन्त्र भावात्मक द्रव्य न मान कर प्रकाश का अभावमात्र मानते हैं। जैन-दर्शन के अनुसार तम
१-वही ५ । २४, १४ २-वही ५ । २४, १५ ३-वही ५ । २४, १६ ४-वही ५। २४, १८