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जन दर्शन में तत्व प्रधानता रहती है, जब कि विशेष में देश-भेद मुख्य होता है। . जो काल की दृष्टि से परिणाम है वे ही देश की दृष्टि से विशेष हैं । इस प्रकार पर्याय, विशेष, परिणाम, उत्पाद और व्यय प्रायः एकार्थक हैं । द्रव्य-विशेष की विविध अवस्थाओं में इन सभी शब्दों का समावेश हो जाता है।
द्रव्य और पर्याय का स्वरूप समझ लेने के बाद यह जानना भी यावश्यक है कि द्रव्य और पर्याय का सम्बन्ध क्या है ? द्रव्य और पर्याय भिन्न हैं या अभिन्न ? इस प्रश्न को सामने रखते हए महावीर ने जो विचार हमारे सामने रखे उन पर एक सामान्य दृष्टि डालना ठीक होगा। भगवतीसूत्र में पार्श्वनाथ के शिष्यों और महावीर के शिष्यों में हुए एक विवाद का वर्णन है। पार्श्वनाथ के शिष्य यह कहते हैं कि उनके प्रतिपक्षी सामायिक का अर्थ नहीं जानते । महावीर के शिष्य उन्हें समझाते हैआत्मा ही सामायिक है । आत्मा ही सामायिक का अर्थ है। यहाँ पर यात्मा एक द्रव्य है और सामायिक प्रात्मा की अवस्था विशेष है अर्थात् पर्याय है। सामायिक आत्मा से भिन्न नहीं है बयान पर्याय द्रव्य से भिन्न नहीं है । यह द्रव्य और पर्याच के अनेप्टि है । इस दृष्टि का समर्थन प्रापेक्षिक है । किसी मात्रात्ना और सामायिक दोनों एक हैं, क्योंकि सामायिक वान्ना की ही एक अवस्था है-ग्रामपर्याय है, अतः सामायिक जाना अनिन है। अन्यत्र द्रव्य प्रार पर्याय के भेद का भी समर्थन किया गया है। 'अस्थिर पर्याय का नाश होने पर भी द्रव्य खिर है, इस वाक्य से स्पष्ट नंददृष्टि झलकती है। यदि च और नाय का सर्वथा अभेद होता तो पर्याय के नष्ट होते ही न्यनी नष्ट हो जाता । इनका यह है कि पर्याय ही द्रव्य नहीं है। च और पर्याव कयंत्रित भी हैं । द्रव्य की पयांचे प्रवल रती हैं, किन्तु द्रव्य **
१-नाया ये मो! समा माया ने अनो! माना २- ने ऋषि नो पिर पलोइ... .