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होकर आगम में सद्भूत व्यवहारनयकी विवक्षा में स्वीकार किया गया है । प्रष्टसहस्री का वह वचन इसप्रकार है :
"न हि कर्तृ स्वरूपं कर्मापेक्षं कर्मस्वरूपं वा कयंपेक्षम् उभयासत्प्रसंगात् । नापि कर्तृव्यवहारः कर्मत्वव्यवहारो वा परस्परानपेक्षः, कर्तृत्वस्य कर्मनिश्चयावसंपद्यमानत्वात् कर्मत्वस्यापि कर्तृ प्रतिपत्तिसमधिगम्यमानत्वात् ।”
परिक्षामुख में श्रविनाभावका निरूपण करते हुये लिखा है :सहक्रमभावनियमोऽविनाभाव: । (प्रमेय रत्नमाला ३-१६)
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श्रविनाभाव दो प्रकार का है - सहभावनियम अविनाभावं और क्रमभावनियम श्रविनाभाव ।
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वहीं सहभावनियम श्रविनाभावका स्पष्टीकरण करते हुये लिखा है :सहचारिणोः व्याप्यव्यारकयोश्च सहभाव' (प्रमेय रत्नमाला ३-१७) सहचारी जैसे रूप और रसमें सहभाव नियम अविनाभाव है तथा व्याप्य व्यापक जैसे वृक्ष और सीसोनमें व्याप्य व्यापक नियम श्रविनाभाव है ।
इसी आधार पर समयसारमें कर्ताकर्म अधिकारका निरूपण करते हुये कर्तकर्मभाव में व्याप्य-व्यापक सम्वन्ध सूचित किया गया है । वह व्याप्य व्यापक नियम अविनाभाव के अन्तर्गत हो आता है । इससे स्पष्ट है कि कर्तृ कर्मसम्बन्ध सद्भूत व्यवहारनयका ही विषय है । यथा
"व्याप्यव्यापकता तदात्मनि भवेन्नैवातदात्मन्यपि, व्याप्यव्यापकभावसंभवमृते का कर्तृकर्मस्थितिः । ( कलश ४६ )
उसका अर्थ-व्याप्यव्यापकता तत्स्वरूपवस्तुमें ही होती है, प्रतत्स्वरूप वस्तु में नहीं ही होता श्रतः व्याप्यव्यापकभावके संभवके विना कर्ताकर्मकी स्थिति कैसी ? अर्थात् कर्ता-कर्मकी स्थिति नहीं ही होती।
पूर्व में दिये गये इन प्रमाणोंसे स्पष्ट होजाता है कि परमार्थसे कर्ता-कर्मभाव सम्बन्ध एक द्रव्यमें ही घटित होता है, दो द्रव्यों में नहीं । इसलिये जहाँ भी श्रागममें प्रयोजन विशेषको ध्यानमें रखकर दो द्रव्योंके श्राश्रयसे कर्तृ - कर्मभावका उल्लेख किया है, वहां वह उपचारसे ही कहा गया है, ऐसा समझ लेना चाहिये। इसका श्राशय यह है कि अन्य द्रव्य अन्य द्रव्यके कार्य में परमार्थसे सहायक नहीं होता, फिर भी उसकी सहायतासे यह कार्य हुआ है यह व्यवहार किया जाता है जो असद्भूत होनेसे ग्रागममें उपचरित ही माना गया है । इसी तथ्यको ध्यान में रखकर निमित्त नैमित्तिक भावको स्पष्ट करते हुये समयसारमें यह वंचन उपलब्ध होता है । यथा :
"जीवपरिणामहेदु कम्मत्तं पोग्गला परिणमति ।
पोग्गलकम्मणिमित्तं तहेव जीवो वि परिणमदि ||८०||
अर्थ :- यहाँ गाथा के पूर्वार्ध में " हेतु" शब्द निमित्तके प्रथमें आया है । इसलिये इस " का अर्थ है