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समोक्षा
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अर्थात वस्तु सामान्य मात्र से है अथवा विशेष मात्र से है जबतक विपक्ष नय अविवक्षित गौण रहता है तबतक अन्य रूप से यह अस्ति नय ही प्रधान रहता है । "नास्ति च तदिह विशेष: वाम सविवचितायां वा । सामान्यैरितरस्य च गौणत्वं सति भवति नास्तिनयः ।। पंचाध्यायी ७५७
अर्थ--वस्तु सामान्यकी अविवक्षा में विशेषसे नहीं है । अथवा विशेषकी अविवक्षा में सामान्य रूपसे नहीं है यहां पर नास्ति नय ही प्रधान रहता है ।
" द्रव्यार्थिकनयपक्षादस्ति न
स्वरूपतोषि ततः ।
न च नास्ति परस्वरूपात सर्वविकल्पत्तिगं यतो वस्तु ७५८ पंचाध्यायी
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तद्रव्यार्थिक नय (निश्चय) की अपेक्षा से वस्तु स्वरूप से भी अस्तिरूप नहीं है । क्योंकि सर्व विकल्पोंसे रहित ही वस्तुका स्वरूप है इस अपेक्षा निश्चय नयसे भी वस्तु स्वरूप अतीत है । "यदिदं नास्तिस्वरूपाभावादस्तिस्वरूपसद्भावात् । दिदं वाच्यत्यय रचितं वाच्यं सर्वप्रमाणपत्रस्य " ||
७५६ पंचाध्यायी अर्थात् जो वस्तु स्वरूपाभाव से नास्ति रूप है । और जो स्वरूप सद्भाव में अस्तिरूप है वही वस्तु विकल्पातीत अवक्तव्य है । यह सर्व प्रमाणपत्र है अर्थात् पर्यायार्थिक नयसे अस्तिरूप और
र्थिक नयसे विकल्पातीत तथा प्रमाणसे उभयात्मक वस्तु है । नित्य अनित्यपक्षउत्पद्यते विनश्यति सदिति यथास्वं प्रतिक्षणं यावत् ।
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