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जैन तत्त्व मीमांसा की
व्यवहार नाम पर्यायका है पर्याय विशिष्ट अनेक, अनेक पर्यायर्थिक नय कहलाता है। एकं सदिति द्रव्यं गुणोऽथवा पर्यायोऽथवा नाम्ना । इतरद्वयमन्यतरं लब्धमनुक्त स एकनयपक्षः । ७५३ १६.. ___ अर्थात-द्रव्य अथवा गुण अथवा पर्याय यह तीनों ही एक नामसे सत कहे जाते हैं । अतः यह तीनों ही अभिन्न एक मत रूप है, एक के कहनेसे वाकीके दोनोंका बिना कहे ही ग्रहण हो जाता है । यही एक नयका पक्ष है। मो पर्यायार्थिक नय है। न द्रव्यं नापि गुणो न च पर्यायो निरंशदेशत्वात् । वस्तु न विकल्पादपि शुद्धद्रव्यार्थिकस्य मतमेतत् ॥
७५४ पंचाध्यायी अर्थान् न द्रव्य है न गुण है न पर्याय है और न विकल्प द्वारा प्रगट है किन्तु निरंश देशात्मक तत्त्व है । यह शुद्ध द्रव्याथिकनयका पक्ष है। ___ "द्रव्यगुणपर्ययाख्ययदनेकं सद्विभिद्यतेहेतोः । तदभेवमनंशन्वादेकं सदिति प्रमाणमतमेतत् ।।
७५५ पंचाध्याय अर्थात् कारणवश जो मनद्रव्य गुण पर्यायोंके द्वारा अनेक रूप भिन्न किया जाता है । वही सत अंश रहित होने से अभिन्न एक है। यह एक अनेकात्मक उभय म्प प्रमाण पक्ष है !
अस्तिनास्तिपक्ष"अपि चास्ति सामान्यमात्रादथवा विशेषमात्रत्वात । अविवक्षितो विपक्षो याचदानन्यः म नाबदस्ति नयः" !
७५६ पंचाध्यायी
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