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जैन तत्त्व मीमांसा के व्यवहारविशिष्टोऽयं नियतमनित्यो नयप्रसिद्ध : स्यात् ।।
७६० पंचाध्यायी अर्थात सतपदार्थ अपने आप प्रतिक्षण उत्पन्न होता है और विनष्ट होता है यह प्रसिद्ध व्यवहार विशिष्ट अनित्यनय अर्थात व्यवहार नय है। "नोत्पद्यते न नश्यति ध्र वमिति सत्स्यादनन्यथावृत्तेः । व्यवहारान्तरभूतो नयः स नित्योप्यनन्यशरणःस्यात् ।।
पंचाध्यायी ७६१ अर्थात् सत न तो उत्पन्न होता है और न नष्ट होता है। किन्तु अन्यथा भाव न होनेसे वह नित्य है। यह अनन्य शरण स्वपक्ष नियत नित्यव्यवहार नय है। "न विनश्यति वस्तु यथा वस्तु तथा नैव जायते नियमात् । स्थितिमेति न केवलमिह भवति स निश्चयनयस्य पक्षस्य ।।
७६२ पंचाध्यायी अर्थात् जिस प्रकार वस्तु नष्ट नहीं होता है उसी प्रकार वह नियमसे उत्पन्न भी नही होता है तथा वह ध्रुव भी नहीं है । यह केवल निश्चय नयका पक्ष है क्योंकि उत्पाद व्यय और ध्रौव्य ये तीनों ही एक समयमें होने वाली सस की पर्याय है। इसलिये इन पर्यायोंको पर्यायाथिक नय विषय करता है । किन्तु निश्चय नय सर्वविकल्पोंसे रहित वस्तुको विषय करता है। "यदिदं नास्ति विशेषः सामान्यस्याविवक्षया तदिदम् । उन्मज्जत्सामान्यरस्ति तदेतत्प्रमाणमविशेषात् ।।
७६३ पंचाध्यायी
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