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( ग )
रसे किया गया है । इसके पढनेसे तत्त्वज्ञान यथार्थ रीतिसे होगा और पं० फूलचंदजी ने मीमांसा नाम रख कर भी जो वकील की तरह इक तरफा पार्ट अदा किया है उसका भी रहस्य समझ में आजायगा।
किसी भी विवाद प्रस्त विषय का निर्णय करते समय न्यायाधीशके समान दोनों पक्षकी समस्त युक्तियोंका निष्पक्ष हो कर मनन करना चाहिये और फिर आगमके आलोकमें उसका निश्च । करना चाहिये । यही एक ऐसी निर्दोष पद्धति है जिससे यथार्थ श्रद्धान ज्ञान होकर आत्मामें विशुद्धि निकषायता आती है। जो लोग किसी कषायकी पुष्टि करने के लिये जैन तत्त्वोंका अन्यथा प्ररूपण करते हैं, वे अपनी चतुराई से भले ही उसके प्रवारमें सफल हो जाय और लोगों में सम्मान भी पा लें परन्तु अशुभ कर्मबंधके बंधन से वे नहीं बच सक्ते, परिपाक समय
आने पर उसका अशुभ फल-दुख उन्हें भोगना ही पड़ेगा। ____ भाई कानजी ने और उनके भक्तोंने, जिन जिन ऋषि प्रणीत शास्त्रों से उनके मतका पाषण नहीं होता परन्तु वे शास्त्र दिगम्बर जैन संप्रदायमें सर्वोपरि मान्य हैं तो उन सबका हिंदी गुजराती अर्थ बदल दिया है और अपने मतकी पुष्टि करनेवाला स्वकल्पित व्याख्यान लिख दिया है। इतना ही नहीं, उसको छपाकर अल्पमूल्य अथवा विनामूल्यसे वितरण कर समस्त दिगम्बर जैन शास्त्र भंडारों में पहुँचा भी दिया है। इस तरह इन्होंने वर्तमान की तरह भविष्य में भी दि० जैन स्त्री पुरुषों के यथार्थ श्रद्धान में परिवर्तन कर देने का असत् प्रयास किया है।
पुरातन ऋषि प्रणीत प्रथ प्राकृत संस्कृत भाषाओं में हैं इस लिये संस्कृत प्राकृत भाषाओंके ज्ञाता निर्लोभी आत्म कल्याणेच्छु विद्वान तो भ्रममें न पडेगें परन्तु वे हैं ही कितने ? आज कल तो लोभी लालची रुपयोंके पीछे अपनी विद्वत्ताका दूसरों के अभि
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