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प्राय प्रचारमें खर्च कर देने वाले ही अधिक दीखते हैं । वील लोग जैसे मेहनताना लेकर अपने मुवक्किल का पक्ष सत् अम्त युक्तियोंसे पुष्ट कर दिखाते हैं वैसे ही ये लोग लिखाईका रुपया वसूलकर द्रव्य दाताके पक्ष की पुष्टि कर दिखात है । परन्तु ये लोग वकील और अपने वीचके इस अंतरको भूल जाते हैं कि वकील तो एक आदमी का अहित करता है और न्यायाधीश उसके अहित को वचा भी सक्ता है । परन्तु शास्त्रोंका विपरीत अर्थ अनन्त जीवों का अहित करता है । जैसा भविष्य दीख रहा है उससे संस्कृत प्राकृतज्ञ विद्वानों का सर्वाथा अभाव ही होता जायगा एसा जान पड़ता है। आजकलके पंडित लंग भी जब हिंदी भाषाके ग्रंथों का ही पठन पाठन करते नजर आते हैं तर आगे तो और भी यह भाषा का स्वाध्याय जोर पकड़ेगा ।
अतः प्रत्येक स्वपर हितैषी दि० नका कर्तव्य है कि-यह सावधान होकर भंडारों में शास्त्र मंग्रह करे। स्वयं भी शास्त्र पढ़ते समय देखले कि-इसका अनुवाद किसने किया है और किस जगह से प्रकाशित हुआ है । आजकल जैले खादा आदि पदार्थों में मिलावट अधिक होने लगी है और उम मिल्लावटी मालकी विक्री करने में जो जितना चतुर होता है वह उतना ही अपना स्वार्थ सिद्ध करलेता है। इसी तरह दिगम्बर जैन समाजमें भी श्वेतावर जैनों की शाखाएं स्थानकवासी इ'ढिया आदि के मानने वाले लोग मिलावटी शास्त्र चलाने लगे हैं। जिस पुरुष वा मन प्रसिद्धि पानेका हुआ, जिसके मन्में जो बात ठीक जंच गई वही शास्त्र का नाम रखकर मनमोहक आकार में छपाकर इम भोली दिगम्बर जैन समाज में अपने मिलावटी शास्त्र का व्यापार शुरू कर देता है । दि० जैन लोग समझते हैं कि हमारी समाज में अमुक व्यक्ति सामिल हो गया तो हमारी संख्या बढ़ गई परन्तु यह नहीं विचारते कि-यह हममें मिला है तो
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