SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समोक्षा घूमती है तो क्या उनका ऐसा कहना न्याययुक्त है ? कदापि नहीं, उसी प्रकार आपका भी अकृत्रिम पदार्थोके साथ कृत्रिम पर्याय की तुलना करना क्या न्याय संगत है ? कभी नहीं । एकपदार्थ गोल है तो दूसरा पदार्थ भी गोल होय यह नियम नहीं है उसका नियम बतलाना यही अनीतिवाद है । उसी प्रकार आपका दिया गया अकृत्रिम पदार्थोंका दृष्टान्त क्रमनियमित पर्याय के साथ लागू नहीं पडता । पाठकोंकी जानकारीके लिये आपका इस विषयका वक्तव्य यहां उद्धृत करना उचित समझते - " द्रव्यकी अपेक्षा-सव द्रव्य छः हैं। उनके अवान्तर भेदोंकी सख्या भी नियत है । सब उत्पाद व्यय और ध्रौव्य स्वभावसे युक्त है, उनका उत्पाद और व्यय प्रतिसमय नियमसे होता है। फिरभी द्रव्योंकी संख्या में वृद्धि हानि नहीं होती। सबद्रव्योंके अलग अलग गुण नियत है। उसमें भी वृद्धि हानि नहीं होती। अनादिकालसे लेकर अनन्तकाल तक जिस द्रव्यकी जितनी पर्याय हैं वे भी नियत हैं उनमें भी वृद्धि हानि होना संभव नहीं है फिर भी लोक अनादि अनन्त है । अनन्तका लक्षण-जिसका व्यय नोट-१ सव द्रव्योंकी पर्याय नियत नहीं हैं क्यों कि पदाथोंमें उत्पादव्यय होना नियत है वह उनका स्वभाव है पर उत्पाद व्यय होनेकी संख्या नियत नहीं है यदि उनकी संख्या नियत हो तो एक दिन वह खतम हो जायगा जव पदार्थमें उत्पाद व्यय होना खतम हो जायगा तो पदार्थ ही खतम हो जायगा इसलिये पदार्थ की पर्याय नियत नहीं है अनियत है समय २ प्रति नवीन २ उत्पन्न होती रहती हैं इस कारण उसका अंत नहीं होता इस की संख्या नियत कर ली जाय तो उसका अंत एक दिन अवश्य हो जायगा । For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy