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जैन तत्व मीमासां की अव कहिये पंडितजी ! आपकी मान्यतामें और नियतिवाद में क्या अंतर है ? यदि कहो कि यह, मान्यता हमारी नहीं है स्वामी कार्तिकेयाचार्य की है सो भी कहना ठीक नहीं है क्योंकि उनका कहना सर्वज्ञ पक्षका है सर्वज्ञके ज्ञान में अन. न्तानन्त पदार्थोकी अनन्तानन्त भूत भविष्यत् वर्तमान सम्बन्धी सर्वपर्यायें भासती हैं उस दृष्टिसे (ज्ञायकपक्ष की दृष्टि से ) उनका कहना नियतिवाद नहीं है किन्तु भगवानके ज्ञानमें सम्यम्दृष्टि निशंक होता है यह दिखलानेका उनका प्रयोजन था उसको आप कारक पक्षों ( अपने कर्तव्य पक्षा) लगाते हैं यही विपरीतता है। शास्त्रोंमें जिस प्रकार सम्यकदृष्टिका और मिध्या दृष्टिका लक्षण किया है उसीप्रकार सम्यक निर्यातका और मिथ्यानितिका लक्षण नहीं किया है । सम्यक और मिथ्या नियतिकी मान्यता कानजीस्वामीकी है उस मान्यताको ठीक आगमानुकूल वतलानेके हेतु आपका प्रयत्न है । सो अनुचित है। आगम विरुद्ध पक्षका समर्थन करना स्त्रपरका अकल्याण करनहारा है इसलिये उसका निषेध करना परम उभय हितकर
-- सम्यक् नियतिके समर्थनमें आपने जो अकृत्रिम पदार्थोंका दृष्टान्त दिया है. वहभी अप्रासंगिक है क्योंकि पर्यायें कृत्रिम हैं. इसलिये वे क्षणभंगुर हैं और अकृत्रिम पदार्थ सदा शाश्वत है. उसमें हेरफेर नहीं होता इसकारण कृत्रिम पदार्थके साथ अकृत्रिम पदार्थका दृष्टान्त देना विषम. है इस वातको आप जानते ही है फिर भी जान बूझकर अनुचित दृष्टान्त देकर आगम विरुद्ध पदार्थकी सिद्धि करना यह कहांका न्याय है ? जिस प्रकार भूगोल लवादी कहते हैं कि सूर्य चन्द्रमा तारा वगैरह गोल हैं इसलिये पृथ्वी भी गोल है सूर्य चन्द्रादि घूमते हैं इसी प्रकार पृथ्वी भी
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