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समोक्षा
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अर्थात् एक समय में अधिक से अधिक गृहस्थलिंगसे चार मनुष्य सिद्ध होते हैं। दश अन्य तापस आदि अजैन लिंगधारी मोक्ष पाते हैं
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यह तो श्वेताम्बर सम्प्रदायकी मान्यता है, इससे भी अधिक मान्यता श्रापकी है जो मोक्ष जानेमें किसीको कुछ अड़चन भी नहीं रहती, चाहे वह मनुष्य हो चाहे वह तियंच हो अथवा नारकी या देवी क्यों न हो जब जिसका मोक्ष जानेका स्वकाल आवेगा वह उसी समय मोक्ष प्राप्त करेगा ही इसमें कुछ भी हेर फेर नही है. इसलिये आपको मान्यताको सर्वोदय मान्यता कही जाय तो अयुक्त नहीं होगी । श्रतः दिगम्बरजैन सिद्धान्त कासार रहस्य आपको ही कानजी स्वामीकी बदौलत प्राप्त हुआ है वह आपको मुबारिक हो, जो सबको अपने अपने स्वकालमें मोक्ष जानेका टिकट मिल जायगा, पंडितजी ! यह तो अच्छा ही हुआ जो किसीको मोक्ष जानेकी चिन्ता ही न करनी पड़ेगी क्रमवद्धपर्यायका --- जव मोक्ष जानेका नम्बर आयगा उसी समय मोक्ष हो ही जायगो किन्तु इसमें एक थोड़ीसी वाधा आती है वह किस तरह दूर होगी सो वतानेको कृपाकरें। एक तो यह कि छह महीना आठसमय में जो ६०८ जीव मोक्ष जानेका जो आपने नियम वतलाया है उसकी far faस प्रकार से बैठ सकती है ? जबकि असंन्तानन्त जीवराशि है तब उनमें से छहमहीना आठ समय में छहसोआठ जीवोंका ही मोक्षजाने का स्वकाल प्राप्त हो अधिकका नहीं होय यह वात संभव प्रतीत नहीं होती क्योंकि इससे अधिक न होने में कोई वाधक कारण भी दिखाई नहीं देता और न ऐसा कोई आगमप्रमाण ही मिलता है अनंतानन्त जीवराशी में से मोक्ष जानेका स्वकाल छह महीना आठ समय में छहसो आठ जीवांको ही प्राप्त होता है अधिकको नहीं
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