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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन तत्त्व मीमांसा की परिणाम ( पर्याय ) से निरुत्सुक होनेके कारण घट नहीं होता अतः बाह्यमें दण्डादि निमित्त सापेक्ष होनेसे घट होता है। दण्डादि घट नहीं होते । इसलिय दण्डादि निमित्त मात्र है" " इस प्रकार इन उद्धरणों से स्पष्ट है कि उपादानगत योग्यताके कार्य भवनरूप व्यापारके सन्मुख होने पर ही वह कार्य होता है अन्यथा नहीं होता" । जैन तत्त्वमीमांसा पृष्ठ ७१-७.-७३ इसके आगे आप लिखते हैं कि-- "यदि तत्त्वार्थवार्तिक के उक्त उल्लं ख पर बारीकी से ध्यान दियाजाय तो उससे यह भी विदित हो जाता है कि घट निष्पत्तिके अनूकूल कुम्हारको जो प्रयत्न प्रेरक निमित्त कहा जाता है वह निमित्तमात्र है । वास्तव में प्रेरक निमित्त नहीं । उनके निामतमात्र है ऐसा कहने का यही तात्पर्य है। ___"हम पहिले प्रत्येक कार्यकी उत्पत्ति स्वकाल ( समर्थ उपादानके व्यापार क्षण ) के प्राप्त होनेपर होती है यह लिख आये हैं। इसलिये यहां पर संक्षेपमें उसका भी विचार कर लेना आवश्यक प्रतीत होता है । यह तो सुनिश्चित है कि प्रत्येक कार्यका स्वकाल होता है। न तो उसके पहिले ही वह कार्य हो सकता है और न उसके बाद ही। जो जिस कार्यका स्वकाल होता है उसके प्राप्त होनेपर अपने पुरुषार्थ ( वलवीर्य ) द्वारा वह कार्य होता है । और अन्य द्रव्य जिसमें उस कार्यके निमित्त होनेकी योग्यता होती है, निमित्त होते हैं। प्रत्येक भव्य जीव का मुक्ति लाभ भी एक कार्य है अतः उसका भी स्वकाल है उक्त । नियम द्वारा उसीकी स्वीकृति दीगई है । केवल यह वात हम तर्कके वलसे कह रहे हों ऐसा नहीं है । क्योंकि कई प्रमुख आचार्योंके इस सम्बन्ध में जो उल्लेख मिलते हैं उन से इस For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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