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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षा कथनकी पुष्टि होती है । आचार्य विद्यानन्दिन आतमीमांसा और अष्टशताके आधारसे जब यह सिद्ध करदिया कि---जो शुद्धि शक्तिकी अभिव्यक्ति द्वारा शुद्धिको प्राप्त कर लेते हैं वे मुक्ति के पात्र होजाते है । और जो अशुद्धि शक्तिको अभिव्यक्ति द्वार अशुद्धिका उपभोग करते रहते हैं उनके संसारका प्रवाह चालू रहता है । तब उनके सामने यह प्रश्न उपस्थित हुआ कि सब संसारी जाव जिस प्रकार अनादि कालसे अशुद्धिका उपभोग करते आरहे हैं उन्म प्रकार वे सदा काल शुद्धिका उपभोग करते हुये मुक्तिके पात्र क्यों नहीं होत ? इसी प्रश्न का उत्तर देते हुये कहते हैं कि - "कषांचित् प्रतिमुक्तिः स्वकाललब्धौ स्यादिति प्रातपत्तव्यम् " किन्ही जीवोंकी प्रतिमुक्ति स्वकालके प्राप्त होने पर होती है। ऐसा जानना चाहिये" ___ " आचार्य विद्यानन्दिने इस कथन द्वारा यह बतलाया है कि शुद्धि नामक शक्ति होती तो सबके है। परन्तु जिन जीवोंके उसके पर्यायरूपसे व्यक्त होनेका स्वकाल आजाता है उन्हीके अपने पुरुषार्थ द्वारा उसकी व्यक्ति होती है और वे ही मोक्षके पात्र होते हैं।" ____ "यह कथन केवल आचार्य समन्तभद्र और विद्यानन्दिने श्री किया हो यह बात नहीं है । भट्टाकलंक देवने भी तत्त्वार्थचार्तिक (अ० १ सू: ३) में इस नभ्यको स्वीकार किया है। वह पकरण निमर्गज और अधिगमज सम्यग्दर्शनका है। इसी प्रसंगको लेकर उन्होंने मर्व प्रथम यह शंका उपस्थित की है 7 " भव्यस्य कालेन निःश्रेयसोपपत्त: अधिगमसम्यक्वाभावः ।। ७ । यदि अबधृतमोनकालात् प्रागधि For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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