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ममीक्षा
२३१ योग्यता कर्म पूर्व वा देवमुभयमदृष्टम् पौरुषं पुनरिह चेपितं दृष्टम् । ताभ्यामर्थसिद्धिः तदन्यतरापायेऽवटनात् पोरुपमात्रेऽर्थादर्शनात । देवमात्रे वा समीहानर्थक्यप्रमंगात् ।
"योग्यता या कर्म देव कहलाता है । ये दोनो अदृष्ट है। तथा इह चेष्टिनको पौरुष कहने हैं। इन दोनोंसे अर्थसिद्धि होती है ! क्योंकि इनमें से किसी एकके अभावमें अर्थसिद्धि नहीं हो सकती। केवल पौरुषसे अर्थसिद्धि मानने पर अर्थका दर्शन नही होता और केवल देवसे मानने पर समोहाकी निष्फलताका प्रसंग
आता है."
___“ उपादानकी योग्यतानुसार कार्य होता है इसका समर्थन वे तत्त्वार्थ वार्तिक (अः १ सूत्र.) में इन शब्दोमें करते हैं "
" यथा मृदः स्वयमन्तर घटभवनपरिणामाभिमुख्ये दण्डचक्रौरुषेय प्रयत्नादि निमिामात्रं भवति यतः सत्स्वपि दंडादिनिमित्त शर्करादिप्रचितो मृपिण्डः स्वयमन्तरघटभवनपरिणामनिरुत्सुकत्वान्न घटो भवति अती मृत्पिण्ड एव बाह्य इंडादिमित्तसापेन आभ्यन्तपरिणामसानिध्यात् घटो भवति न दण्डादयः इति दण्डादीनां निमित्तमात्रत्वं भवति" __ " जैस मिट्टीके स्वयं भीतरसे घट भवन रूप परिणामके - अभिमुख होनेपर दण्ड चक्र और पुरुष कृत प्रयत्न आदि निमित्तमात्र होते हैं। क्योंकि दण्डादि निमित्तों के रहनेपर भी वालुकाबहल मिट्टी का पिण्ड स्वयं भीतरसे घट भवन रूप
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