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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ममीक्षा २३१ योग्यता कर्म पूर्व वा देवमुभयमदृष्टम् पौरुषं पुनरिह चेपितं दृष्टम् । ताभ्यामर्थसिद्धिः तदन्यतरापायेऽवटनात् पोरुपमात्रेऽर्थादर्शनात । देवमात्रे वा समीहानर्थक्यप्रमंगात् । "योग्यता या कर्म देव कहलाता है । ये दोनो अदृष्ट है। तथा इह चेष्टिनको पौरुष कहने हैं। इन दोनोंसे अर्थसिद्धि होती है ! क्योंकि इनमें से किसी एकके अभावमें अर्थसिद्धि नहीं हो सकती। केवल पौरुषसे अर्थसिद्धि मानने पर अर्थका दर्शन नही होता और केवल देवसे मानने पर समोहाकी निष्फलताका प्रसंग आता है." ___“ उपादानकी योग्यतानुसार कार्य होता है इसका समर्थन वे तत्त्वार्थ वार्तिक (अः १ सूत्र.) में इन शब्दोमें करते हैं " " यथा मृदः स्वयमन्तर घटभवनपरिणामाभिमुख्ये दण्डचक्रौरुषेय प्रयत्नादि निमिामात्रं भवति यतः सत्स्वपि दंडादिनिमित्त शर्करादिप्रचितो मृपिण्डः स्वयमन्तरघटभवनपरिणामनिरुत्सुकत्वान्न घटो भवति अती मृत्पिण्ड एव बाह्य इंडादिमित्तसापेन आभ्यन्तपरिणामसानिध्यात् घटो भवति न दण्डादयः इति दण्डादीनां निमित्तमात्रत्वं भवति" __ " जैस मिट्टीके स्वयं भीतरसे घट भवन रूप परिणामके - अभिमुख होनेपर दण्ड चक्र और पुरुष कृत प्रयत्न आदि निमित्तमात्र होते हैं। क्योंकि दण्डादि निमित्तों के रहनेपर भी वालुकाबहल मिट्टी का पिण्ड स्वयं भीतरसे घट भवन रूप For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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