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समीक्षा
२१७
शतसे आप सर्वथा अनभिज्ञ हैं इसीलिये सिद्धान्त विरुद्ध अयुक्त बात लिख रहे हैं। क्या वाह्य सामग्री एकमी मिलने पर मन का एकमा क्षयोपशम होने का नियम है । यदि नियम है तो बतानेकी कृपा करें : याद नियम नहीं है तो फिर ऐसा कहना कि "उसमें भी तो यही प्रश्न होता है कि जब सवो ए, समान बाह्य सामना सुलभ है तब सब का एक समान जयोपशम क्यों नहीं होता क्या यह ठीक है ? कदापि नहीं। इसका कारण यह है कि सबका कम बन्ध एकसा नहीं है इसलिये बाह्य सामग्रा सबको एकसं। मिलने पर भी सवका योशम एकता नहीं होता। प्रदश वन्ध सबका ममान होने पर भी प्रकृतिबन्ध सबका समान नहीं होता। अथवा प्रकृतिबन्ध सत्रका समान होनेपर भी स्थितिबन्ध सब का समान नहीं होता अथवा स्थिनियन्ध सरका समान होने पर भी अनुभाग वन्ध सव का समान नहीं होता। __ इसके भिवा कमका उदय अनुदय काल भी समान नहीं होता इसीलिये किसी भी जीवकी संसारावस्थामें ज्ञानादिकी प्रकटता समान नहीं होता ! इसके सिवा अध्यापक आदिका निमित्त भी सवको समान नहीं मिलता। जिसको आप समान कहते हैं वह आपने बिना भीतरी विचार किये ही लिया है । अतस्तल से विचार कीजिये कि सब लडके क्या अपना उपयोग पढने में समान लगाते हैं, नहीं ।
क्या यह वात आप नहीं जानते हैं ? अवश्य जानते हैं फिर जानबूझकर विद्वत्समाजमें हास्यके पात्र बनना आप जैसे विद्वानों को शाभा नहीं देता । जेनसमाज तो श्रापसे बडी बडी आशा कर रहा था कि एस उच्च कोटाके विद्वान द्वारा जैनधर्मकी रक्षा होगी किन्तु हुआ इससे विपरीत ! जब बाड ही खेतको खाने लगी तब रक्षा करे कौन ? जव जोन विद्वान ही चैनधर्म पर कुठाराघात करने
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