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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१६ जैन तत्त्व मीमांसा की क्त्व प्राप्त करनेकी योग्यता श्राती ही नहीं और पंचलब्धि की प्राप्ति भी उपदेशादि बाह्य निमित्तके बिना नहीं होती ऐसा नियम है तत्र सम्प्राप्ति में गुरु देशना की आवश्यक्ता नहीं है ऐसा कहन। श्रागम विरुद्ध है। आप कार्योत्पत्ति में निमित्त कारणको अनिचित्कर मान कर कार्योत्पत्ति में केवल पदार्थको योग्यता हो सिद्ध करते हैं और योग्यता के विषय में जो जो उदाहरण आपने दिये हैं वे सब योग्यताके पोषक नहीं हैं । अतः हम उन उदाहरणों पर प्रकाश डालेंगे जिससे पता चल जायगा कि उदाहरण युक्तियुक्त हैं या नहीं अथवा आगम उनसे सहमत है या नहीं । (१) बालक स्कूल में पढनेकेलिये जाते हैं और उन्हें अध्यापक मनोयोग पूर्वक पढाता भी है। पढनेमें पुस्तक आदि जो अन्य साधन सामग्री निमित्त होती है वह भी उन्हें सुलभ रहती है । फिर भी अपने पूर्व संस्कारवश कोई बालक पहने में तेज निकलते हैं। कई मध्यम होते हैं केई मन्द होते हैं और कई निमित्तरूपसे स्कूल में जाकर भी पढ़ने में समर्थ नहीं होते। इसका कारण क्या है ? जिस बाह्य साधनसामग्रीको लोकमें कार्योत्पादक कहा जाता है वह सबको सुलभ है और वे पढने में भी परिश्रम करते हैं फिर भी वे एक समान क्यों नहीं पढते ? यह कहना कि सबका ज्ञानावरणकर्मका क्षयोपशम एकसा नहीं होता इसलिये सव एक समान पढने में समर्थ नहीं होते ठीक प्रतीत नही होता क्योंकि उसमें भी तो वही प्रश्न होता है कि जब सबको एक समान बाह्य सामग्री सुलभ है सबका एक समान क्षयोपशम क्यों नहीं होता । जो लोग वाह्य सामग्रीको कार्योत्पादक मानते है उन्हें अंतमें इस प्रश्नका ठीक उत्तर प्राप्त करने के लिये योग्यता पर ही श्राना पडता है ।" पंडितजी आप सिद्धान्तशास्त्री कहलाते हैं किन्तु सिद्धान्तकी For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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