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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ममता २१५. निका बन्ध क्रमतें मिट जाय इत्यादिक योग्य अवस्था होना सो प्रयोग्यलब्धि हैं । सो ए चारों लब्धि भव्य वा अभव्यके हो हैं इन चार लब्धि भये पीछे सम्यक्त्व होय तो होय न होय तो नहीं भी होय ऐस लब्धिसार विषे कहा है । तातें तिस तत्त्वविचार लाके सम्यक्त्व होनेका नियम नाहीं । जैसे काहूको हिती शिव दaraो वह जानि विचार करे जो यह सीख दई सो कैसे है । पीछे विचारतां वाके ऐसे ही है ऐसी प्रतीति हो जाय अथवा अन्यथा विचार होय अथवा अन्य विचारविषे लगि तिस सीखका निर्धार न करे तो प्रतीत नाही भी होय Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुरु तत्त्वोपदेश दिया ताको जानि विचार करे -- यह उपदेश दिया सो केसे हैं। पीछे विचार करनेते वाके ऐसे ही है ऐसी प्रतीति होय जाय अथवा अन्यथा विचार होय वा अन्य विचार विषे लगि तिस उपदेशका निर्धार न करे, प्रतीति नाही होय ऐसा नियम है । याका उद्यम तो तत्त्वविचारका करने मात्र ही है। बहुरि पांचज करणलब्धि भये सम्यक्त्व हो ही होय ऐसा नियम है । सो जाके पूर्व कही थी च्यार लब्धि ते तो भई हायर अंतर मुहूर्त पीछे जाके सम्यक्त्व होनो होय तिस ही जीवके करणलब्धि होय है सो इस करणलब्धि वालेके बुद्धिपूर्वक तो इतना ही उद्यम होय है जो तत्त्व विचारविषे उपयोग को तदूप होय लगावे । ता करि समय समय परिणाम निर्मल होते जाय है जैसे काहू सखिका विचार ऐसा निर्मल होनेलग्या जाकरि यांके शाघ्र ही ताकी प्रतीति हो जासी । तैसे तत्त्व उपदेश ऐसा निर्मल होने लग्या जा करि यांके शीघ्र ही ताका श्रद्धान होसी । बहुरि इन परिणामनिका तारतम्य केवलज्ञानकरि देख्या तांकरि निरूपण करणानुयोग में किया है । " A 1 इस कथनले आत्मामें सम्यक्त्व प्राप्त करनेकी योग्यता पंचलब्धि भयेही होय है । विना पंचलब्धि प्राप्त किये आत्मा में सम्य For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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