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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षा जैसे होते हैं तैसे झलक जाते है पदार्थोको झलकाना उनका स्वभाव है उम स्वभावमें यह बात नहीं है कि क्रमवद्ध पदार्थोंको ही प्रति विम्बित करे । अक्रमवद्ध पदार्थाको अपने प्रतिविम्बित न करे । उनमें नो सभी तरह के पदार्थ जिस रूपमें क्रमबद्ध या अक्रम बद्ध निष्ठ हो उसी रूपमें झलक जाते हैं। उसी प्रकार सम्पूर्ण अनन्तानन्त पदार्थों की अनन्तानन्त क्रमवद्ध या अक्रम वद्ध पर्यायें केवलज्ञारमें झलक जाती है ऐमा तो नहीं है कि केवलज्ञानमें पदार्थोकी अक्रमवद्ध पर्याय नहीं झलकती क्रमवद्ध पर्याय ही झलकती हैं। उनमें तो मव ही तरहको सम्पूर्ण पदार्थाकी त्रिकालिक पर्यार एक माथ युगपत झलकती रहती है इस कारण केग्ली भगवान भविष्यवाणी कर देते हैं कि अमुक पदार्थका अमुक ममयमें इम रूपमें परिणमन होने वाला है इसपर यह मान लेना कि वह परिणमन क्रमवद्ध ही हुआ है अक्रमबद्ध नहीं हुआ है यह मान्यता सर्वथा आगम विरुद्ध है क्योंकि यदि सर्व पदार्थाका परिणमन क्रमवद्ध ही होता हे तो विपाक निर्जराका एवं कर्मोका उत्कर्षण अपकपण संक्रमणादिकका कथन मिध्या ठहरता है । वली भगवान कहत ह कि जो कालपायकर क्रमवद्ध कर्मोकी निर्जरा होती है उससे तो मंसार ही वढता है आत्मा का कुछ भी हित नहीं होता। किन्तु जो तपके द्वारा अविपाक निर्जरा करता है अर्थात् अक्रमबद्ध निर्जरा करता है वही जीव शिवपदको पाता है इस विषयमें पंडित दौलतरामजी छहढाला में कहते हैं कि - निज काल पाय विधि भरना-तासों निज काज न सरना तपकरि जो कर्म खिपावे, सो ही शिवसुख दरसावे ।। For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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