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जैन तत्त्व मीमांसा की
ही रहा ! कहीं भगवान की भविष्य वाणी विफल हो सकती है ! ___ चौथा उदाहरण वे अंतिम शुत केवली भद्रबाहु स्वामी का उपस्थित करते हैं । जव भद्रबाहु बालक थे तव वे अपने दूसरे साथियों के साथ जिस समय गोलियोंसे खेल रहे थे उसी समय विशिष्ट निमित्तज्ञानी एक आचार्य वहां से निकले। उन्होंने देखा कि वालक भद्रवाहुने अपने वुद्धिकौशलसे एकके ऊपर एक इसी प्रकार चौदह गोलिया चढाकर अपने साथी सव बालकों को आश्चर्य चकित कर दिया है यह देखकर आचार्य ने अपने निमित्तज्ञानसे जानकर यह भविष्यवाणा की कि यह वालक ग्यारह अंग और चौदह पूर्वका पाठी अंतिम श्रुत केवली होगा और उनकी वह भविष्यवाणी सफल हुई । पुराणोंमें चक्रवर्ती भरत
और चन्द्रगुप्त सम्राट के स्वप्न अंकित हैं वहां उनका फल लिखा हुआ है। तीर्थकरके गर्भ में आने के पूर्व उनकी माताको जो सोलह स्वप्न दिखलाई पड़ते हैं वे भी गर्भमें आने वाले वालकके भविध्यके सूचक माने गये हैं। इसके सिवाय पुराणों में अगणित प्राणीयोंके भविष्य बृतान्त संकलित हैं जिसमें बतलाया गया है कि कौंन कव क्या पर्याय धारण कर कहाँ कहां उत्पन्न होगा यह सब क्या है ? उनका कहना है कि यदि प्रत्येक व्यक्तिका जावन क्रमः सुनिश्चित नहीं हो तो निमित्त शास्त्र ज्योतिषशास्त्र या अन्य विश दज्ञानके अधारसे यह सव कैसे जाना सकता है ? अतः भवि. ध्यसम्बन्धी घटनाओंके होने के पहिले ही वे जानला जातो हैं ऐसा शास्त्रोंमें उल्लेख है । और वर्तमानमें भी ऐसे वैज्ञानिक उपकरण या अन्य साधन उपलब्ध हैं जिनके आधार से अंशतः या पूरीतरहसे भविष्यसम्बन्धी कुछ घटनाओंका ज्ञान किया जासकता है । और किया जाता है। इससे स्पष्ट विदित होता है कि जिस द्रव्य
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