SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 195
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षा भूल थी कि पुरुषार्थ करनेसे सुख मिलता है अब यह भूल दूर हागई। लोग समझ गये कि जिस समय जा होना है उस समय वही होगा उसको हटाने के लिये प्रयत्न करनेकी जरूरत नहीं। इसविषयमें आपका यह कहना है कि प्रत्येक उपादान अपनी अपनी स्वतंत्र योग्यता सम्पन्न होता है और उसके अनुसार प्रत्येक कार्यकी उत्पत्ति होती है। तथा इससे यह भी सिद्ध हुआ कि प्रत्येक समयका उपादान पृथक पृथक है इसलिये उनस क्रमशः जो जो पर्यायें उत्पन्न होती है वे अपने अपने काल में नियत हैं वे अपने अपने समय में ही होती है। आगे पीछे नही होतो" इसके उदाहरण स्वरूप प्रमाण आप यह देते हैं कि "जब भगवान ऋषभदेव इस धरणी तल पर विराजमान थे, तभी उन्होंने मरीचि के सम्बन्ध में यह भविष्यवाणी कर दी थी कि वह आगामी तीर्थकर होगा और वह हुआ भी। दूसरा उदाहरण द्वारका-दाह का वे उपस्थित करते हैं । यह भगवान नेमिनाथ को केवलज्ञान उत्पन्न होने के बाद की घटना उन्होंने केवलज्ञान से जान कर एक प्रश्न के उत्तर में कहा था कि आजसे वारह वर्षके अन्त में मदिरा और द्वीपायण मुनिके योगसे द्वारका दाह होगा और वह कार्य भी उनका भविष्य वाणी अनुसार हुआ । इस भविष्यवाणी को विफल करनेकेलिये यादवों ने कोई प्रयत्न उठा नहीं रखा था। परन्तु उनकी भविध्यवाणी सफल होकर हा रही । तीमरा उदाहरण वे श्रीकृष्ण की मृत्युका उपस्थित करते हैं । श्री कृष्णकी मृत्यु भगवान नेमिनाथ ने जरदकुमारके वाणके योगसे क्तलाई थी । जरदकुमारने उसे बहुत टालना चाहा । इस कारण वह अपना घरवार छोडकर जंगल जंगल भटकता फिर! परन्तु अंतमें जो होना था वह होकर For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy