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समीक्षा
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गुरौ भक्तिगुरौ भक्तिभक्तिः सदाऽस्तु मे । चारित्रमेव संसारवारणं मोक्षकार |
क्या यह कथन असत्य हैं ? कदापि नहीं । समंतभद्राचार्य जैसे तार्किक आचार्यने भी जिनेन्द्रकी भक्तिको सर्वदुःखों को नाश करनेवाली अर्थात् मोक्ष सुख को प्राप्त करानेवाली बतलाई है ।
"देवाधिदेवचरणे परिचरणं सर्वदुःखनिर्हरणं । कामदुहि कामदा हिनि परिचिनुवादाहती नित्यं ॥ रत्नकरंडे
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कुन्दकुन्दस्वामीने भी पूजा और दानको गृहस्थोंका मुख्य धर्म बतलाया है। और मुनिराजोंका ध्यान और अध्ययन करना मुख्य धर्म बतलाया है जिससे मोह और क्षोभ परिणामों का नाश हो कर आत्मधर्मकी प्राप्ति होती है।
दाणं पूजा मुक्खं सावयवम्मेण सावया तेण विखा । झणझणं मुक्खं जधम्मे तं विणा तहा सो वि ॥११॥
जिलपूजामुखिदाणं करेह जो देह सत्तिरुवेण । सम्माट्ठी साधय थम्मी सो होइ मोक्खमग्गरबो || १२|| रयणसारे अर्थात अपनी शक्ति के अनुसार जो श्रावक दान और पूजा करता है वह मोक्षमार्ग में गमन करता है यह कुन्दकुन्द स्वामीके वचन है जो अध्यात्म रसके रसिक पूर्णज्ञाता थे उनके समय सारादि ग्रन्थोंको पढ़कर आप जैसे विद्वान भी व्यवहार धर्मको लोप करने में परमार्थकी सिद्धिका स्वप्न देख रहे हैं यह बडे आश्चर्य की बात है ।
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