SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षा १३७ से चारों गतियों में यह जीव उत्पन्न होता रहता है, इमीका नाम संसार है। इस संसार परिभ्रमणका कारण कर्म है । जैसा कर्मका उदय होता है उसी के अनुसार गति आयु शरीर आदि अवस्था प्रान हो जाती है। "जब जाको जमो उदै तब सो है तिहिथान । शक्ति मरोर जीवकी उदय महावलवान, जसे गजराज परयो कर्दमके कुण्ड वीच. उद्दिम अरूढे प न छूटे दुख दंद सों जैसे लोह कंटककी कोरसों उरभयो मीन पंचत असाता लहै सात लहै संदसों। जसे महाताप सिखाहिंसो गरास्यो नर तके निजकाज उठ सके न सुछंदसो । तसे ज्ञानवत सव जानै न बसाय कछु वन्ध्यों फिरे पूर्व कर्मफल फंदसों समयसारवन्धद्वार इसलिये कर्मवन्ध का कारण आत्माका रागद्वेष परिणाम है और रागद्वेष होनेका कारण पूर्व कृत कर्म का उदय है । उस उद्यानुसार यह जीव गति योनि को प्राप्त होता है। जीवपरिणामहेदु कम्म पुग्गला परिणमंति । पुग्गलकम्मणिमित्तं तहेव जीवो विपरिणमदि ।८६। -समयसारका कर्माधिकार For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy