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जैन तत्व मीमांसा की
है उपचरित है ऐसा कहना आगम विरुद्ध है। नैगमादि नयों में नेगम संग्रह व्यवहार तीन नय तो द्रव्याथिक ( निश्चय नय ) है और ऋजुसूत्र शब्द समभिरुढ एवं भूत यह चार नय पर्याया , र्थिक ( व्यवहार ) नय है । “नैगमसंग्रहव्यवहारास्त्र योनया द्रव्यार्थिका वेदितव्याः । ऋजुशब्दसमभिरूद्वैवंभूता श्चत्वारा नया पर्यायार्थिका ज्ञातव्याः ।" सवार्थ सिद्धौ ___"उत्ता नैगमादयो नया उत्तरोत्तरसूक्ष्मविषयत्वादेषा क्रमः, पूर्व पूर्व हतुकत्वाच्च" नैगमात्संग्रहोऽल्पविषयस्तन्मात्राहित्वात् नैगमस्तु भावाभावविध याहुविषयः । यथैव हि भावे संकल्पस्तथाऽभावेनैगमस्यसंकल्पः एवमुत्तरत्रापि योञ्चम् । नैगमः संग्रहस्य हेतुः, संग्रहो व्यवहारस्य हेतुः । व्यवहार ऋजुसूत्रस्य हेतुः । ऋजुसूत्र: शब्दस्य हेतुः, शब्दः समभिरूढस्य हेतुः । समभिरूढ एवंभूतस्य हेतुरित्यर्थः । आधीनाः __ अर्थात् नैगमादि सात नय है इनका लक्षण अनेक धर्मरूप जो वस्तु ताविषे अविरोधकरि हेतुरूप अर्पण करनेते माध्यक विशेषका यथार्थस्वरूप प्राप्त करनेकू व्यापाररूप जो प्रयोग करना सो नय है । सो यह नय संक्षेपते दोय प्रकार है द्रव्याथिक पर्यायाथिक ऐसे । तहां द्रव्य तथा सामान्य तथा उत्सर्ग तथा अनुवृत्ति ए सर्व एकार्थ हैं । ऐसा द्रव्य जाका विषय सा द्रव्याथिक है । वहुरि पर्याय तथा विशेष तथा अपवाद तथा व्यावृत्ति ए सर्व एकार्थ हैं। ऐसा पर्याय जाका विषय सो पर्यायाथिक है। इन दोऊनिके भेद नैगमादि हैं। तहां नैगम, संग्रह, व्यवहार ए तीन तो द्रव्याथिक है । वहुरि ऋजुसूत्र शब्द, समभिरूढ, एवम्भूत एं चारि पर्यायाथिक है । तामें भी गम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र एं चारि ता अर्थकू प्रधानकरि प्रवर्ते हे तातें इनको अर्थनय कहिय बहुरि शब्द समभिरूढ़ एवंभूत ए तीन शब्दका प्रधानकरि प्रवर्ते है
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