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समीक्षा
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इनको शब्दन कहिये । इहां कोई पूछे पर्यायार्थिक तो नय कहा अरु गुणार्थिक न कहा सो कारण कहा ? ताका उत्तर-सिद्धा
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पर्याय सहभाविक्रमभावी ऐसे दोय प्रकार कहे है । तहां सहभावी पर्याय को गुण संज्ञा कही है। क्रमभावीकू पर्याय संज्ञा कही है । तातें पर्याय कहनेते यामें गुण भी जानिलेना ऐसे जानना नैगमनय ने तो वस्तुका सत् असत् दोऊलिये । संग्रहनयनै सत् ही लिया । व्यवहारने सतका एक भेद लिए। ऋजुन वर्तमनकू हो लिया । शब्दोंने वर्तमान सत में भी भेदकर एक कार्य पकड़ा समभिरूडौं वा कार्यके अनेक नाम थे तिसमें एक नामकू पकडा एवंभूतने तभी जिस नामकू पकडा तिसही क्रियारूप परिणाम
ताकू पकडा | दृष्टान्त - जैसे एक नगरविषे एक वृक्ष ऊपरि पक्षी बोलेथा ताकू काहूने की या नगरविषे पक्षी गेले हैं। काहूनें कही या नगर में एक वृक्ष है तामें बोले है । काने कहा या वृक्षका एक वडा डाला है तामें बोले हैं। काने कही इस डालामें एक शाखा छोटी डाली है तामें बोले हैं। काहूने कही वाके शरीर में कंठ है तामें बोले है। ऐसे उत्तरोत्तर विषय छूटता गया सो यह अनुक्रमते इनि नयनिकं वचन जानने । जिसपदार्थकू साधिये तापरि सर्वही यह एसे नय लगाय लेने । सारांश - पहला पहला नयतो कारणरूप है | श्रमिला अगिला कार्यरूप है। तहां कार्य की पेक्षा स्थूलभी कहिये | ऐसे ये नय पूर्व पूर्वतो विरुद्धरूप महाविषय हैं। उत्तर उत्तर अनुकूल रूप रूप विषय हैं । जाते पहिले नयका विषय अगले नय में नाहीं ताते विरुद्ध है। अगलेका विश्य पहिलेमें गभित है तातें ताके अनुकूलपणा है ।
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ऐसे ये नैगमादि नय कहे ते श्रागे अल्प विषय हैं तिस कारणते उनके पाठका अनुक्रम है । पहिले नैगम वह्या ताका तो वस्तु मद्रूप असद्रूप इत्यादि अनेक धर्मरूप है । ताका संकल्प विषय हैं
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