________________
२६ : जैन तर्कशास्त्र में भनुमान-विचार
( ४ ) अवयवानुमान
(५) आश्रयो-अनुमान ( १ ) कार्यानुमान-कार्यसे कारणको अवगत करना कार्यानुमान है। जैसेशब्दसे शंखको, ताडनसे भेरोको, ढाडनेसे वृपभको, केकारवसे मयूरको, हिनहिनाने ( हेषित ) से अश्वको, गुलगुलायित ( चिंघाडने ) से हाथीको और घणाघणायित ( घनघनाने ) से रथको अनुमित करना।
( २ ) कारणानुमान-कारणसे कार्यका अनुमान करना कारणानुमान है। जैसे-तन्तुसे पटका, वीरणसे कटका, मृत्पिण्डसे घड़ेका अनुमान करना । तात्पर्य यह कि जिन कारणोंसे कार्योंकी उत्पत्ति होती है, उनके द्वारा उन कार्योंका अवगम प्राप्त करना ‘कारण' नामका 'सेसवं' अनुमान है ।२
(३) गुणानुमान-गुणसे गुणीका अनुमान करना गुणानुमान है। यथागन्धसे पुष्पका, रससे लवणका, स्पर्शसे वस्त्रका और निकषसे सुवर्णका अनुमान करना ।
( ४ ) अवयवानुमान-अवयवसे अवयवोका अनुमान करना अवयवानुमान है । यथा-सोंगसे महिषका, शिखासे कुक्कुटका, शुण्डादण्डसे हाथीका, दाढ़से वराहका, पिच्छसे मयूरका, लांगूलसे वानरका, खुरासे अश्वका, नखसे व्याघ्रका, बालाग्रसे चमरीगायका, दो पैरसे मनुष्यका, चार पैरसे गो आदिका, बहुपादसे कनगोजर ( पटार ) का, केसरसे सिंहका, ककुभसे वृषभका, चूडीसहित बाहुसे महिलाका, बद्धपरिकरतासे योद्धाका, वस्त्रसे महिलाका, धान्यके एक कणसे द्रोण पाकका और एक गाथासे कविका अनुमान करना । १. कज्जेणं--संखं सद्देणं, मेरि ताडिएणं, वसभं ढक्किएणं, मोरं किंकाइएणं, हयं हेप्तिएणं, गयं गुलगुलाइएणं, रहं घणघणाइ एणं, से तं कज्जेणं ।
-अनुयोग० उपक्रमाधिकार प्रमाणद्वार, पृष्ठ ५३९ । । २. कारणेणं-तंतवा पडरस कारणं ण पडा तंतुकारणं, वीरणा कटस्स कारणं ण कडो
वीरणाकारणं, मिप्पिंडो घटस्स कारणं ण घडो मिप्पिंडकारणं, से तं कारणेणं । -वही, पृष्ठ ५४० । ३. गुणेणं-सुवण्णं निकसेणं, पुप्फ गंधेणं, लवणं रसेणं, मइरं आसायएण, वत्थं फासेणं,
से तं गुणेणं । --वही, पृष्ठ ५४० । ४. अवयवेणं-महिसं सिंगण, कुक्कुडं सिहाएणं, हत्थिं विसासेणं, वराहं दाढाएणं, मोरं
पिच्छेणं, आसं खुरेणं, वग्धं नहेणं, चमरिं बालग्गेणं, वाणरं लंगुलेणं, दुपयं मणुस्सादि, चउप्पयं गवमादि, बहुपयं गोमि आदि, सीहं केसरेणं, वसहं ककुहेणं, महिलं वलयबाहाए, गाहा-परिअरबंधेण भडं जाणिज्जा महिलियं निवसणणं, सित्थेण दोणपागं, कविं च एक्काए गाहाए, से तं अवयवेणं । -वही, पृष्ठ ५४०।