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जैन-परम्परामें अनुमान-विकास : २५ (ग ) भगवतीसूत्रमें अनुमानका निर्देश
भगवतीसूत्र में भगवान् महावीर और उनके प्रधान शिष्य गौतम ( इन्द्रभूति) गणधरके संवादमें प्रमाणके पूर्वोक्त चार भेदोंका उल्लेख आया है, जिनमें अनुमान भी सम्मिलित है। (घ ) अनुयोगसूत्रमें अनुमान-निरूपण
अनुमानकी कुछ अधिक विस्तृत चर्चा अनुयोगसूत्रमें उपलब्ध होती है । इसमें अनुमानके भेदोंका निर्देश करके उनका सोदाहरण निरूपण किया गया है । १. अनुमान-भेद : इसमें अनुमानके तीन भेद बताए हैं । यथा
(१) पुत्ववं ( पूर्ववत् ) (२) सेसवं ( शेषषत् )
( ३ ) दिइसाहम्मवं ( दृष्टसाधर्म्यवत् ) १. पुव्ववं3-जो वस्तु पहले देखी गयी थी, कालान्तरमें किंचित् परिवर्तन होनेपर भी उसे प्रत्यभिज्ञाद्वारा पर्वलिंगदर्शनसे अवगत करना 'पुचवं' अनुमान है। जैसे बचपनमें देखे गये बच्चेको युवावस्थामें किंचित् परिवर्तनके साथ देखने पर भी पूर्व चिन्हों द्वारा ज्ञात करना कि 'वही शिशु' है। यह 'पुन्ववं' अनुमान क्षेत्र, वर्ण, लांछन, मस्सा और तिल प्रभृति चिन्होंसे सम्पादित किया जाता है । २. सेसवं.-इसके हेतुभेदसे पाँच भेद हैं--
( १ ) कार्यानुमान (२) कारणानुमान ( ३ ) गुणानुमान
१. गोयमा णा तिणढे समझे। .. से किं तं पमाणं ? पमाणे चउविहे पण्णत्ते । तं जहापच्चरखे अणुमाणे आवम्मे जहा अणुयोगद्दारे तहा णेयव्वं पमाणं ।
-भगवती० ५,३, १६१-९२।। २, ३, ४. अणुमाण तिविहे पण्णत्त। तं जहा-१. पुव्ववं, २. सेसवं, ३. दिट्ठसाहम्मवं । से किं पुन्ववं ? पुनवं
माया पुत्तं जहा न? जुवाणं पुणरागयं ।
काई पच्चभिजाणेज्जा पुन्वलिंगेण केणई ।। तं जहा-खेतेण वा, वण्णण वा, लंछणेणं वा, मसेण वा, तिलएण वा । से तं पुव्ववं । से किं तं सेसवं ? सेसवं पंचविहं पण्णत्तं । तं जहा-१. कज्जेणं, २. कारणेणं, ३. गुणेणं, ४. अवयवेणं, ५ आसएणं । -मुनि श्रीकन्हैयालाल, अनुयोगद्वारसूत्र, मूलसुत्ताणि, पृष्ठ ५३६ ।